Book Title: Panchastikay Padyanuwada evam Tirthankar Stavan
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Ravindra Patni Family Charitable Trust Mumbai

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Page 6
________________ कथनमात्र से मूर्त है अर धातु चार का हेतु है। परिणामी तथा अशब्द जो परमाणु है उसको कहा ।।७८।। स्कन्धों के टकराव से शब्द उपजें नियम से । शब्द स्कन्धोत्पन्न है अर स्कन्ध अणु संघात है।।७९।। अवकाश नहिं सावकाश नहिं अणु अप्रेशी नित्य है। भेदक-संघातक स्कन्ध का अर विभाग कर्ता काल का ।।८।। एक वरण-रस गंध युत अर दो स्पर्श युत परमाणु है। वह शब्द हेत अशब्द है, स्कन्ध में भी द्रव्याणु है ।।८।। जो इन्द्रियों से भोग्य हैं अर काय-मन के कर्म जो। अर अन्य जो कुछ मूर्त हैं वे सभी पुद्गल द्रव्य हैं ।।८२।। (२१) होती गति जिस द्रव्य की स्थिति भी हो उसी की। वे सभी निज परिणाम से ठहरें या गति क्रिया करें ।।८८।। जिनका होता गमन है होता उन्हीं का ठहरना। तो सिद्ध होता है कि द्रव्य चलते-ठहरते स्वयं से ।।८९।। जीव पुद्गल धरम आदिक लोक में जो द्रव्य हैं। अवकाश देता इन्हें जो आकाश नामक द्रव्य वह ।।१०।। जीव पुद्गल काय धर्म अधर्म लोक अनन्य हैं। अन्त रहित आकाश इनसे अनन्य भी अर अन्य भी ।।११।। अवकाश हेतु नभ यदि गति-थिति कारण भी बने। तो ऊर्ध्वगामी आत्मा लोकान्त में जा क्यों रुके ।।१२।। (२३) धर्मास्तिकाय अवर्ण अरस अगंध अशब्द अस्पर्श है। लोकव्यापक पृथुल अर अखण्ड असंख्य प्रदेश है।।८३।। अगुरुलघु अंशों से परिणत उत्पाद-व्यय-ध्रुव नित्य है। क्रिया गति में हेतु है वह पर स्वयं ही अकार्य है।।८४।। गमन हेतुभूत है ज्यों जगत में जल मीन को। त्यों धर्म द्रव्य है गमन हेतु जीव पुद्गल द्रव्य को ।।८५।। धरम नामक द्रव्यवत ही अधर्म नामक द्रव्य है। स्थिति क्रिया से युक्त को यह स्थितिकरण में निमित्त है।।८६।। धरम अर अधरम से ही लोकालोक गति-स्थिति बने। वे उभय भिन्न-अभिन्न भी अर सकल लोक प्रमाण है।।८७।। (२२) लोकान्त में तो रहे आत्मा अष्ट कर्म अभाव कर। तो सिद्ध है कि नभ गति-थिति हेतु होता है नहीं ।।९३।। नभ होय यदि गति हेतु अर थिति हेतु पुद्गल जीव को। तो हानि होय अलोक की अर लोक अन्त नहीं बने ।।९४।। इसलिए गति थिति निमित्त आकाश हो सकता नहीं। जगत के जिज्ञासुओं को यह कहा जिनदेव ने ।।९५।। धर्माधर्म अर लोक का अवगाह से एकत्व है। अर पृथक् पृथक् अस्तित्व से अन्यत्व है भिन्नत्व है ।।९६।। जीव अर आकाश धर्म अधर्म काल अमूर्त है। मूर्त पुद्गल जीव चेतन शेष द्रव्य अजीव हैं ।।९७।। (२४)

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