Book Title: Panchashati Prabodh Sambandh Author(s): Mrugendravijay Publisher: Suvasit Sahitya PrakashanPage 10
________________ प्रस्तावना व्रन्थy नामकरण : प्रस्तुत “पञ्चशती प्रबोध ( प्रबन्ध ) सम्बन्ध " श्री शुभशीलगणिनी रचना छे. प्रन्थकारे प्रस्तुत पंधना नामनो उल्लेख ग्रंचना प्रारंभमा "अंयोहयं पञ्चशतीप्रबोधसम्बन्धनामा क्रियते मया तु" आ मुजब 'पञ्चशतीप्रबोध सम्बन्ध'ना नामथी कर्यो छे. 'जिनरत्न कोश'मा पण प्रा.ह.दा. वेलणकरे प्रस्तुत कृतिनो आज नामथी उल्लेख कर्यो छे. ते सिवाय अन्य कथा-कोशोनी जेम प्रस्तुत कृति "कथा-कोश, तरोके पण क्वचित् आणीती छे सदुपरांत "प्रबन्ध पञ्चशती " ओ रीतर्नु अहिं संक्षिप्त नाम पण में सूचव्यु छे. ग्रन्थकारनो समय अने तेमनी रचनाओः विक्रमना १५ मा झतकमा थई गयेला आचार्यश्री सोमसुंदर सूरिनो शिष्य-समुदाय विद्वान तेमज विपुल प्रमाणमा हतो. तेमना युगमा भनेकविध साहित्य- सजन थयु. श्रीसोमसुन्दरसूरिना पट्टशिष्य, सहस्रावधानी मा० मुनिसुंदरसरि हता. तेमना अन्य गुरु-भ्राताभो पण अनेक ग्रंथोना रचयिता हता. मा० सोमसुंदरसूरिनो प्रशिष्यपरिवार पग बणो मोटो हतो. आ ग्रंथना कर्ता पं० शुभशीलगणि के जेओ मा परिवारना जाणीता ओक साहित्यमर्जक विद्वान् छे, प्रन्धकार श्री शुभशीलगणिए आ धनी समाप्तिनी अंतिम प्रशस्तिमा पोसाने श्री रत्नमंडन सूरिना शिष्य होबार्नु जणाव्युछे. प्रथना अंतर्गत अधिकारनो एक प्रशस्तिमा लक्ष्मोसागरसूरिना शिष्य सरोके पण उल्लेख मळे छे. तेमज ग्रंथना मंगलाचरणमा पण लक्ष्मीसागरसूरीणां पादपग्नप्रसादतः शिव्येण शुभशीलेन, अन्ध एष विधीयते ।। (श्लोक ३) आ रीते पोताना प्रप्रगुरु लक्ष्मीसागरसूरिना शिष्य तरीके पोताने जमाव्या के. 'विक्रमादित्य चरित्र' "भरतेश्वर-वृत्ति" वगेरेमा भीशुमशीलमुनिसुन्दरसूरिना शिष्य होवार्नु पण कबूले छे. मा मोता संभक्ति छे के प्रन्यकारे कृतज्ञतानी पुन्ध-भाव नायी प्रेराईने विद्या निश्रा ने दीक्षा अम ऋणे प्रकारना गुरुतुं स्मरण करवु रचित मान्यु होय. * पञ्चशती प्रबोध सम्बन्ध-In four chapters Containing 600 Stories in all composed io Sam. 1521 by Subhashila pupil of Laxmisagarasuri of the Tapagaccha. + मुनिसुन्दरसूरीशविनेयः शुभशीलभा । ... चकार विक्रमादित्य-चरित्रं मन्दधीरपि ।।। (विक्रमचरित्रम् प्रशस्ति-१२) "Aho Shrutgyanam"Page Navigation
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