Book Title: Panchashati Prabodh Sambandh
Author(s): Mrugendravijay
Publisher: Suvasit Sahitya Prakashan

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Page 18
________________ [९] अर्वाचीन समान्तर प्रयोगो सहित रजू करवानो विस्तृत प्रयास भोगीलाल. जे सांडेसरा अने जे. पी ठाकरना Lexicograpbical Studies in Jain Sanskrit (१९६२)मां थयो. तेमां 'प्रबन्धचिन्तामणि', 'प्रबन्धकोश' अने 'पुरातनप्रबन्धसंग्रह'मांधी लगभग अढी सो पृष्ठ भरीने सामग्री आपी छे. अनेक स्थळे मूव्मांधी उद्धरणो, समान्तर प्रयोगस्थानो, व्युत्पत्तिनोंध के अर्वाचीन भाषाओमांथी तुलनात्मक सामग्री पण प्रस्तुत करी छे. तेमना अध्ययननो आगळनो खंड पण तेमणे 'जर्नल ओफ धी ओरिअन्टल इन्स्टिट्यट-बरोडा'ना गोविंदलाल भट्ट स्मारक अंक (पृ० ४०६-४५६) मा प्रकाशित कर्यो छे. तेमां लगभग एकावन ग्रंथोमांधी सामग्री तारवीने आपी छे. प्रबन्धोनी तथा इतर जैन संस्कृत कथाग्रंथोनी भाषा लोकभाषाना प्रयोगोथी अटली भरचक होय छे के अंक ज ग्रंथमांथी सेंकडो प्रयोगो तारवी तो पण वणा प्रयोगो वणनोंध्या रही जाय. आ दृष्टिले सांडेसरा अने ठाकरे "प्रबन्धकोश' मांथी तारवेली सामग्री titet Jozef De ens ha Lexicographical Adderda from Rajasekbarasuri's Prabandha Kosa. ( Indian Linguistics Turar Jubilee Volume II १९५९, पृ० १८०-२१९ ) ओ लेखमां तारवेली सामग्री सरखाववा जेवी छे. जोसेफ डेलेउनो लेख वधु पद्धतिसर, झीणवटवाळो अने सामग्रीना वर्गीकरण परत्वे वधु माहिती आपतो छे. तो गुजराती वगेरे भारतीय भाषाओनो अने जैन साहित्यनी परंपरानो जे लाभ सांडेसरा अने ठाकरना कार्यने मळ्यो छे तेथी डेलेउने वंचित रहेवु पडयु छे. उपरांत बनेनी पसंदगीनी दृष्टिमां पण सारो एव' फरक छे. बने प्रयासने एकबीजाना पूरक गणवाना रहे छे. 'प्रबन्धपंचशती'मांथी अहीं आपेली सामग्री पण निःशेषकथननी दृष्टि तारववानो प्रयास नथी कर्यो, तेम करवा जतां अक स्वतन्त्र ग्रन्थ ज तैयार करवो पडे. अहीं नमूना रूपे ज केटलाक शब्दो अने प्रयोगो आप्या छे. आमां केटलाक प्रयोगो सीधा कशा फेरफार विना गुजरातीमांथी संस्कृतमां लई लीघेला छे तो बीजा केटलाक स्पष्टपणे तत्कालीन गुजराती शब्दो अने प्रयोगोने संस्कृतरूप आपीने घडी काढेला छे. संस्कृतमांथी प्राकृतमा आवतां शब्दोना ध्वनिपरिवर्तननां जे व्यापक वलणो प्रतीत थाय छे, तेमने यांत्रिकपणे लागु पाडीने प्रचलित गुजराती शब्दनु पूर्वरूप कृत्रिम रीते घडी काढवामां आव्यु छे. तेमां खरेखरा मूरनी कशी चिंता नथी करी, तेम संस्कृत अने गुजराती विभक्तिसम्बन्धो वच्चेना भेदने अने बदलायेली अर्थछायाओ अने रूढिप्रयोगोने पण अवगण्या छे. आ दृष्टिले ख्याल आपवा माटे 'प्रबन्धपंचशती'मांथी विशिष्ट शब्दोनी यादी आपवा साथे अहों केटलाक गुजरातीमूलक रूढिप्रयोगो ( तेम ज कोईक अन्य विशिष्ट प्रयोगो) नोंध्या छे. आमां मुस्लिम राजवीओ साथेना प्रसंगोनी वातमां फारसी शब्दोना प्रयोगो छे. जेम के'कलन्दर', 'कागद' 'खरशान' 'गोहरि' 'बीबी' 'भूत' 'मसीत' 'मीर' 'मुद्गल' 'मुलाण' 'मुशलमान' 'सुरत्राण' 'हज' 'हरीमज' इत्यादि. 'प्रबन्धपञ्चशती'मां आपणने अवा पण अनेक शब्द मळे छे, जेमनो अर्थ अस्पष्ट के अज्ञात रहे छे. आनां विविध कारणो छे. संस्कृतीकरणने लीधे पायानु गुजराती रूप कन्यु मुश्केल बने; तत्कालीन गुजराती शब्द अत्यारे वपराशमाथी लुप्त थयो होय के बोलीओमां ज प्रचलित होय; प्रयोग पूर्वना प्रबन्धोनी भाषामांथी लीधो होय पण पछीनी लोकभाषामां ते अप्रचलित होय; लहियाओनी मूलथो मूळ शब्दरूप विकृत थईने जळवाई रहयु होय वगेरे. "Aho Shrutgyanam"

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