Book Title: Palipathavali
Author(s): Jinvijay
Publisher: Gujarat Puratattva Mandir Ahmedabad

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Page 104
________________ धनियो गोपो- भगवा अत्थि वसा अत्थि धेनुपा गोधरणियो पवेनियो पि अस्थि । उभो पिगवम्पती च अत्थि, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥९॥ धनियसुत भगवा नत्थि वसा नत्थि धेनुपा गोधरणियो पवेनियो पि नत्थि । उसभोपि गवम्पती नत्थि, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥१०॥ धनियो गोपो खीला निखाता असम्पवेधी, दामा मुजमया नवा सुसण्ठाना । न हि सक्खिन्ति धेनुपापि छेत्तुं अथ चे पत्थयसी पवस्म देव [ ॥११॥ " ९५ उसोरिव छेत्व बन्धनानि, नागो पूतिलतं व दालयित्वा । नाहं पुन उपेस्सं गव्भसेय्यं, अथ चे पत्थयसी पवरस देव ॥ १२ ॥ निन्नञ्च थञ्च परयंतो, महामेघो पावस्सि तावदेव । सुत्वा देवस्स वस्सतो इममत्थं धनियो अभासथ ॥ १३ ॥ ' लाभा वत नो अनप्पका ये मयं भगवन्तं अद्दसाम । सरणं तं उपेम चक्खुम सत्था नो हो हे तुवं महामुनि ॥ १४ ॥ गोपी च अहञ्च अस्सवा ब्रह्मचरियं सुगते चरामसे । जातिमरणस्स पारगा, दुवखस्सन्तकरा भवामसे ' ॥ १५ ॥ मारो पापिमा--- नन्दति पुत्ते हि पुत्तिमा, गोमिको गोहि तत्थेव नन्दति । उपधी हि नरस्स नन्दना, न हि सो नन्दति यो निरूपधि॥१६॥ Jain Education International भगवा सोचति पुत्तेहि पुत्तिमा, गोमिको गोहि तथेव सोचति । उपधी हि नरस्स सोचना, न हि सो सोचति यो निरूपधीति १७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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