Book Title: Painnay suttai Part 2
Author(s): Punyavijay, Amrutlal Bhojak
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 398
________________ ३४५ गाहंको २६७२ 157 83 87 पढम परिसिटुं गाहा गाईको गाहा संघयण-धिईजुत्तो १२७५ संथारयपव्वज पवजई संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउ ३८२ संथारयपव्वजं संपडि___" " " चेव ३६२१ संथारो उत्तिमहे संघं जिणवरसिहं 2029 ,, मउओ से संघाडएण गंतूण ४२६७ संधिजा आरियं मम्गं संघो सइंदियाणं २४६८ संपति एक्कारसम , भवकतारे 486, 2037,2566 संपत्ता य खणणं जिणसंजईपडिसेवाए 2532 " " " सुरसंजमगुणहाणिकरा 990 ",जणवदा संजमजत्तासाहण 995 संपत्ते बल-विरिए संजमजोय(ए) आगहणाय पृ० ७४ टि. संपुण्ण्णचंदवयणं संजम-तवतुंबारय ४३९१ संपुण्णदोहलाओ संजमविरिएण विणा 952 संपुष्णवाहिणीओ संजमसाहणमित्तं 1044 संबंधि-बंधवचे संजमसिहराऽऽरूढो 708, 1618 , बंधवेसु य संजमहेउं पुरिसत्त 1614 संभरइ जो तिसंझं संजोए जो विहाणं तु संमरसु सुयण ! जं तं संजोगमूला जीवेण १४५७, पृ० ८३ टि. संभूते सुभद्द सुदंसणे १४४०, २८४०, 2587 संलिहियदव्व-भावो संजोयविप्पओगेसु 1727 संलीणयाउवगओ संझागयम्मि कलहो ६८१ संलेहगस्स मूलं संझागयं गहगयं ६८३ संलेहणं करितो " रविगयं ६७८ , सुणित्ता संडसिया केइ जिया 449, 2141 संलेहणाइ कालो संततं बंधए कम्म १६६९ संलेहणा इ दुविहा संतमेतं इमं कम्म १७१२ , उ " संतस्स करण णस्थि १७११ संलेहणाए सम्म *सतं दुक्खी दुक्खं उदीरेति १७२२ संलेहणापरिस्सम संती कुंथू य अरो...। अर- ४११४ संलेहणा य दुविहा " " "" ...| अव ३९२९ ___, सरीरे संती य भरहवासे...। एग- ३८७० संवच्छरपारणए "" " ...| भरणी ४०८४ संवच्छरस्स सुंदरि! संते जम्मे पसूयंति १७४१ संवच्छरेण भिक्खा संतोवसंत-धिइमं ९४२ " होही संथारगपव्वजं न य 159 संवच्छरो उ बारस 228 संवरे अणियट्टी य संथारस्थो खवओ 761 | संवरो निजरा चेव १७७१ ४२९४ ३७९७ ३७४३ ४४४७ १३९३ 2594 ३६७० १९५९ १३४६ ११२६ ३०८३ २७९७, 1662 ४१४८ 1837 1080 1345 1049 1344 1086 1926 8 728 884, 1722 ९२५, 1067 1931 ४२०१ २२८ ३९४२ ४५९९ ३१७४ ४६५९ १६६३ " पडि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427