Book Title: Padmacharitam Part 01
Author(s): Ravishenacharya, Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 4
________________ प्राक्कथन । यह ग्रन्थ यद्यपि 'पद्मपुराण' नामसे ही सर्वत्र प्रसिद्ध है; परन्तु इसका वास्तविक नाम 'पद्मचरित' है, क्योंकि इसमें पद्ममुनिका ---जो कि पुरुषोत्तम रामचन्द्रका नामान्तर है -चरित निबद्ध किया गया है । दिगम्बर जैनसम्प्रदाय के उपलब्ध कथासाहित्य या प्रथमानुयोगमें 'पद्मचरित सबसे प्राचीन ग्रन्थ है । जहाँ तक हम जानते हैं, अब तक इसके पहलेका कोई भी कथाप्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ है। भावनगरकी जैनधर्मप्रसारक सभाने जो ' पउमचरिय*' नामका प्राकृत ग्रन्थ प्रकाशित किया है, वह इससे बहुत पहले का है; परन्तु अभी तक यह बात विवादत्रस्त ही है कि उसके कर्त्ता दिगम्बरसम्प्रदायके थे या श्वेताम्बरके । 'पद्मचरित भगवान् महावीरके निर्वाणके १२०३ वर्ष बाद लिखा गया था जैसा कि उसके निम्नलिखित पद्यसे प्रकट होता है: द्विशताभ्यधिके समासहस्त्रे समतीतेऽर्धचतुर्थवर्षयुक्ते । जिनभास्करवर्द्धमानसिद्धे चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् ॥ यदि वीर निर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रम संवतका प्रारंभ माना जाय, तो इस प्रन्थका रचनाकाल विक्रम संवत् ८३४ समझना चाहिए । पुन्नाटसंघी आचार्य जिनसेनका हरिवंशपुराण विक्रम संवत् ८४० ( शक संवत् ७०५ ) में समाप्त हुआ है, अर्थात् वह इससे लगभग ६ वर्ष पीछेकी रचना है। इसी कारण उसमें इस ग्रन्थका उल्लेख मिलता है:-- कृतपद्मोदयोद्योता प्रत्यहं परिवर्त्तिता । मूर्तिः काव्यमयी लोके रवेरिव रवेः प्रिया ॥ ३४ ॥ - सर्ग १ x' चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् । - अन्तिम सर्ग, श्लोक १८५ * इस ग्रन्थके सम्बन्ध में मेरा एक विस्तृत नोट जैनहितैषी भाग ११, अंक ३, पृष्ठ १३२ में प्रकाशित हो चुका है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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