Book Title: Padarth Prakash 26 Gunsthankramaroh
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 194
________________ પરિશિષ્ટ 5 167 आरंभसयंकरणं, अट्ठमिया अट्ठ मास वज्जेइ / नवमा नव मासे पुण, पेसारंभे वि वज्जेइ // 990 // दसमा दस मासे पुण, उद्दिट्ठकयं पि भत्त न वि भुंजे / सो होइ उ छुरमुंडो, सिहलिं वा धारए कोई // 991 // जं निहियमत्थजायं, पुच्छंत सुयाण नवरि सो तत्थ / जइ जाणइ तो साहइ, अह न वि तो बेइ न वि याणे // 992 // खुरमुंडो लोएण व, रयहरणं पडिग्गहं च गिण्हित्ता / समणब्भूओ विहरइ, मासा एक्कारसुक्कोसं // 993 // ममकारेश्वोच्छिन्ने, वच्चइ सन्नायपल्लि दटुं जे / तत्थ वि साहु व्व, जहा गिण्हइ फासुं तु आहारं // 994 // - प्रवयनसारोद्धार, 2 153 मुं (छाया - दर्शनं व्रतानि सामायिकः, पौषधः प्रतिमा अब्रह्म सचित्तम् / आरम्भः प्रैषः उद्दिष्ट-वर्जकः श्रमणभूतश्च // 980 // यत्सङ्ख्या या प्रतिमा, तत्सङ्ख्या: तस्यां भवन्ति मासा अपि / क्रियमाणासु अपि कार्या-स्तासु पूर्वोक्तक्रियास्तु // 981 // प्रशमादिगुणविशिष्टं, कुग्रहशङ्कादिशल्यपरिहीणम् / सम्यग्दर्शनमनघं, दर्शनप्रतिमा भवति प्रथमा // 982 // द्वितीयाऽणुव्रतधारी, सामायिककृतश्च भवति तृतीयायाम् / भवति चतुर्थी चतुर्दश्य-ष्टम्यादिषु दिवसेषु // 983 // पौषधं चतुर्विधमपि च, प्रतिपूर्ण सम्यक् स त्वनुपालयति / बन्धादीनतिचारान्, प्रयत्नतः वर्जयतीमासु // 984 // सम्यगणुव्रतगुणव्रत-शिक्षाव्रतवान् स्थिरश्च ज्ञानी च / अष्टमीचतुर्दशीषु, प्रतिमां तिष्ठत्येकरात्रिकीम् // 985 // अस्नानः विकटभोजी, मुकुलिकृतः दिवसब्रह्मचारी च / रात्रौ परिमाणकृतः, प्रतिमावर्जेषु दिवसेषु // 986 //

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