Book Title: Padarth Prakash 26 Gunsthankramaroh
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
View full book text ________________ 189 पृष्ठ क्र. 132 12 133 133 परिशिष्टः 9 क्र. गाथा 99 स सूक्ष्मकाययोगेऽथ, स्थिति कृत्वा पुनः क्षणम् / निग्रहं कुरुते सद्यः, सूक्ष्मवाचित्तयोगयोः // 19 // 100 ततः सूक्ष्मे वपुर्योगे, स्थितिं कृत्वा क्षणं हि सः / सूक्ष्मक्रियं निजात्मानं, चिद्रूपं विन्दति स्वयम् // 100 // 101 छद्मस्थस्य यथा ध्यानं, मनसः स्थैर्यमुच्यते / तथैव वपुषः स्थैर्य, ध्यानं केवलिनो भवेत् // 101 // 102 शैलेशीकरणारम्भी, वपुर्योगे स सूक्ष्मके / तिष्ठनूास्पदं शीघ्रं, योगातीतं यियासति // 102 // 103 अस्यान्त्येऽङ्गोदयच्छेदात्, स्वप्रदेशघनत्वतः / करोत्यन्त्याङ्गसंस्थान-त्रिभागोनावगाहनम् // 103 // 104 अथायोगिगुणस्थाने, तिष्ठतोऽस्य जिनेशितुः / लघुपञ्चाक्षरोच्चार-प्रमितैव स्थितिर्भवेत् // 104 // 105 तत्रानिवृत्तिशब्दान्तं, समुच्छिन्नक्रियात्मकम् / चतुर्थं भवति ध्यान-मयोगिपरमेष्ठिनः // 105 // 106 समुच्छिन्ना क्रिया यत्र, सूक्ष्मयोगात्मिकाऽपि हि / समुच्छिन्नक्रियं प्रोक्तं, तद्वारं मुक्तिवेश्मनः // 106 // देहास्तित्वेऽप्ययोगित्वं, कथं ? तद् घटते प्रभो ! / देहाभावे तथा ध्यानं, दुर्घटं घटते कथम् ? // 107 // 108 वपुषोऽत्रातिसूक्ष्मत्वा-च्छीघ्रम्भाविक्षयत्वतः / कायकार्यासमर्थत्वात्, सति कायेऽप्ययोगता // 108 // 109 तच्छरीराश्रयाद्ध्यान-मस्तीति न विरुध्यते / निजशुद्धात्मचिद्रूप-निर्भरानन्दशालिनः // 109 // 110 आत्मानमात्मनाऽऽत्मैव, ध्याता ध्यायति तत्त्वतः / उपचारस्तदन्यो हि, व्यवहारनयाश्रितः // 110 // 111 चिद्रूपात्ममयोऽयोगी, ह्युपान्त्यसमये द्रुतम् / युगपत् क्षपयेत्कर्म-प्रकृतीनां द्विसप्ततिम् // 111 // 134 134 134 135 135 135 136 136
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