Book Title: Padarth Prakash 26 Gunsthankramaroh
Author(s): Vijayhemchandrasuri
Publisher: Sanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust

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Page 215
________________ 188 गुणस्थानक्रमारोहमूलगाथासूचिः क्र. गाथा पृष्ठ क्र. 126 126 127 127 122 स सर्वातिशयैर्युक्तः, सर्वामरनरैर्नतः / चिरं विजयते सर्वो-त्तमं तीर्थं प्रवर्तयन् // 86 // वेद्यते तीर्थकृत्कर्म, तेन सद्देशनादिभिः / भूतले भव्यजीवानां, प्रतिबोधादि कुर्वता // 87 // उत्कर्षतोऽष्टवर्षोनं, पूर्वकोटिप्रमाणकम् / कालं यावन्महीपीठे, केवली विहरत्यलम् // 48 // चेदायुषः स्थितिथूना, सकाशाद्वैद्यकर्मणः / तदा तत्तुल्यतां कर्तुं, समुद्धातं करोत्यसौ // 89 // दण्डत्वं च कपाटत्वं, मन्थानत्वं च पूरणम् / कुरुते सर्वलोकस्य, चतुर्भिः समयैरसौ // 10 // एवमात्मप्रदेशानां, प्रसारणविधानतः / कर्मलेशान् समीकृत्यो-क्रमात्तस्मान्निवर्त्तते // 11 // समुद्घातस्य तस्याद्ये, चाष्टमे समये मुनिः / औदारिकाङ्गयोगः स्याद्, द्विषट्सप्तमकेषु च // 12 // मिश्रौदारिकयोगी च, तृतीयाद्येषु तु त्रिषु / समयेष्वेककर्माङ्ग-धरोऽनाहारकश्च सः // 13 // यः षण्मासाधिकायुष्को, लभते केवलोद्गमम् / करोत्यसौ समुद्धात-मन्ये कुर्वन्ति वा नवा // 14 // समुद्धातान्निवृत्तोऽसौ, मनोवाक्काययोगवान् / ध्यायेद्योगनिरोधार्थं, शुक्लध्यानं तृतीयकम् // 15 // आत्मस्पन्दात्मिका सूक्ष्मा, क्रिया यत्रानिवृत्तिका / तत्तृतीयं भवेच्छुक्लं, सूक्ष्मक्रियाऽनिवृत्तिकम् // 16 // बादरे काययोगेऽस्मिन्, स्थितिं कृत्वा स्वभावतः / सूक्ष्मीकरोति वाक्चित्त-योगयुग्मं स बादरम् // 97 // त्यक्त्वा स्थूलं वपुर्योगं, सूक्ष्मवाचित्तयोः स्थितिम् / कृत्वा नयति सूक्ष्मत्वं, काययोगं तु बादरम् // 18 // 130 131 131 131 131

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