Book Title: Operation In Search of Sanskrit Manuscripts in Mumbai Circle 6
Author(s): P Piterson
Publisher: Royal Asiatic Society

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Page 77
________________ EXTRACTS FROM MANUSCRIPTS यच्चान्यदप्यत्र निवेशितं स्मादन्यादृशं किञ्चन बुद्धिमान्द्यात् । अयं निबन्धोऽञ्जलिरस्ति सर्व तत्साधु निवेशनीयम् ॥ १३ ॥ श्रीविक्रमादित्यनरेन्द्रकालादष्टानवत्यर्यम १२९८ संख्यवर्षे । पुष्यार्कभृत्कार्तिककृष्णषष्ठयां संपूर्णतामेष समाससाद ॥ १४ ॥ यावन्नौरिव भव्यतारणविधावास्ते भवाम्भोनिधी श्रीसिद्धेन कृता कथेयमममार्हद्वाक्यकाष्ठोच्चयैः । तावत्तद्गतसत्पदार्थनिचयस्योदञ्चनेऽसौ क्षमा सारोद्धारकृतिः सदा तदनुगा नौकेव संसर्पतु ॥ १५ ॥ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्म ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । शतानि सप्तपञ्चाशत्रिंश ५७३० समधिकान्यहो ॥ १६ ॥ अङ्कतोऽपि श्लोक ५७३० ॥ उपमितिभवप्रपञ्चकथा । No. 590. Navyabrihatkshetrasamasa, by SOMATILARA with the Avachuri by GUNARATNASURI [नव्यबृहत्क्षेत्रसमासः-सावणिः मू. मा. सोमातिलकः अव० गुणरत्नसूरिः]. Begins : सिरिनिलयं केवळिणं अवितहवयणं नमित्तु वीरजिणं । नरखित्तविषारलवं वुच्छामि सुआउ सपरहिअं॥१॥ Ends: इस नरखित्तविबारो सोमतिलयसरिणा समासेणं । लिहिऊ सपरेसि हिऊ सोहेअव्वो सुअहरेहि ॥ ३३ ॥ एवं सर्व गाथाः ॥ ३८८ ॥ इति नव्यबृहत्क्षेत्रसमासः ॥ फाल्गुनमासे त्रयोदश्यां तपागच्छनायकभट्टारकप्रभुपरमगुरुश्रीश्रीरत्नशेखरसूरिशिष्यपुं. गवपंडितसत्यहंसगणिवाचनाचार्यपुरंदराणां विनेयेन हंसगणिना फलहीग्रामवरेऽलेखि स्वपरोपकाराय ।। सं० १५११ वर्षे ॥

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