Book Title: Nyaypraveshsutram Nyaypraveshvrutti Sahitam
Author(s): Aa Sempa Dorje
Publisher: Kendriya Uccha Tibbati Shiksha Samsthan
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________________ 62 64) तत्र गुणनिमित्तं साधनत्वेन गुणेन निर्धार्यते इति / गोमण्डलादिव गौः ____ क्षीरसंपन्नत्वेन गुणेन / དེ་ལ་ཡོན་ཏན་རྒྱུ་མཚན་དུ་བྱ་བ་ནི་, ཡོན་ཏན་ (དེ་ཉིད་)སྒྲུབ་པར་བྱེད་ पपई यादे मावस / (यो ) AC मी मा laser', བ་ (གཅིག) ཡོན་ཏན་འ་མ་ཡོངས་སུ་ལྡན་པ་ཉིད་ཀྱིས (ངེས་གཟུང་བྱེད་པ་) བཞིན་ནོ་, ཞེས་པའོ།། / ___ पक्षनिरूपणं = संगण पहनाम:५५) पच्यते इति पक्षः। 'पच्' व्यक्तीकरणे / पच्यते व्यक्तीक्रियते योऽर्थः स पक्षः / 'साध्य' इत्यर्थः / स च धर्मविशिष्टो धमों / (FRE) अमावस , माप - म5 से5 1) 'गोमण्डलाद्' वेष'म.-""(AE) मे रममा रमपम मेव'; मम. དེའི་རྣམ་གྲངས་སུ་བྱས་སོ།། དེ་ཡང; “ཡོན་ཏན་ སྒྲུབ་བྱེད་ཏུ་གཟུང་ཞེས་པའི་དྲམེན། | 2) यहां पक्ष के सम्बन्ध में वृत्तिकारने 'पच्यते इति पक्षः" "तथा 'पच्' व्यीक्तकरणे' - इस प्रकार का व्याकरण सम्बन्धी व्युत्पत्ति का आख्यान किया है / परन्तु पाणिनि की अष्टाध्यायी में 'पच्' धातु का निदर्शन नहीं है, अपितु-'पचि' व्यक्तीकरणे," यह पाठ है (भ्वा. गणपाठ-धातु-१७४) इस सम्बन्ध में सिद्धान्त-कौमुदी में-“पञ्चते' यह पाठ है,पच्यते यह पाठ नही मिलता है (सिद्धः. गण. भाग 3, पृ. 62, मो. बना. प्रकाशित) इसकी टीका-'बालम नोरमा' में-'पचि' विस्तारे, इति चुरादौ वक्ष्यते" (पृ. 63, भाग 3.) / चुरादिगण में-"पचि' विस्तारवचने' (अष्टा. धातु, सं. 1652) / इसकी व्याख्या सिद्धान्त को. में "प चयति, पर चयते, इति व्यक्तार्थस्य" यह पाठ है (सिद्धा. को. भाग 3. पृ. 342,) / वाचस्पतिमिश्र कृत न्यायवार्तिक-तात्पर्य-टीका में-" "पक्ष' इति / 'पचि' व्यक्तीकरणे" इत्यस्माद् व्युत्पन्नम्। कर्मतया व्यज्यमानतया वा उपादानं स्वार्थस्य 'पक्षः' इति पदम् / उपादीयतेऽने नेति व्युत्पत्त्या ।'-(तात्प टी. 1 / 1 / 31 पृ. 508) / = अतः यहां-'पच' यह पाठ यदि'पचि' उच्चारणार्थत्वेन 'इत्' हुआ हो, तो सम्भव है, अन्यथा अशुद्ध प्रतीत होता है /