Book Title: Nyaypraveshsutram Nyaypraveshvrutti Sahitam
Author(s): Aa Sempa Dorje
Publisher: Kendriya Uccha Tibbati Shiksha Samsthan
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________________ 65 ཅིའི་ཕྱིར་ཞེ་ན་, ཉེ་བར་མཚོན་བྱེད་ཙམ་མོ་ཞེས་ཤིས་པར་བྱ་སྟེ། करी, 16-133 पैदा की सेवामा समान पाई) . माया 70) यथापर्वताविक क्षेत्र, नद्यादिकं वनमिति / न पूनर्यथा, लम्बकर्णः, ब्राह्मणादयो वा इति 12 ____ोवा महगा पर बल, पोमा पर्दै अगा, ཞེས་བ་(ལྟ་བུ་)ལོ། །སླར་, རྣ་བ་རིང་པོ་དང་, བྲམ་ཟེ་ལ་སོགས་པའི་ རིགས་” ཞེས་བ་ལྟ་བུ་ནི་མིན་ནོ།། 1) Ava-मममम ममापीर-वेष वर्मा 2) "पक्षादय' इस वाक्य में निहित विवादः- यहां देखने से तो प्रतीत होता है कि साधन वाक्य के अवयव के रूप में 'पक्षः' वचन का भी व्यपदेश किया गया है। कुछ विद्वान् इस बात को मानते भी है। परन्तु यह 'बहुव्रीहि समास के भेदों का अवबोध न होने से उत्पन्न भ्रान्ति है / इसे वृत्तिकारने 'पक्षादय' इस समासपद का भाख्यान करते हुये स्पष्ट किया और उन्होने पक्ष' वाचक 'पद' को साधन-वाक्य के अवयव के रूप मे स्वीकार नहीं किया है। बहुव्रीहि समास में निहित 'तद्गुण-संविज्ञान' एवं 'अतद्गुणसंविज्ञान के विभेद करते हुए 'पर्वलादिकं क्षेत्रम्' इस समास पद के समान 'पक्षादय' इस समास पद को 'अतद्गुणसंविज्ञानब हुव्रीहि समास पद माना है। अभिप्राय-सौगत मन में 'पक्षवाचक' पद, साधन वाक्य के अवयव के रूप में अभीष्ट नहीं है। यह एक दोष माना जाता है / यहाँकेवल त्रिरूपलिङ्गाख्यान को ही साधन-वाक्य माना जाता है / - "निरूपलिङ्गाख्यानं पराथैमनुमानम्' (3 / 11. न्या. बि. पृ. 150, वही)। 'हेतुदृष्टान्तयोरेव साधनावयवत्वं न पक्षस्य / " (न्या. व. पंजि. पृ. 42) /