Book Title: Nitya Mangal aur Gautamswami Ka Ras
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। १२ ।। ।।१४।। जाणेवि वद्धमाणजिणपाया, सुरनरकिन्नर आवे राया कांतिसमूहे झलझलकता, गयण विमाणे रणरणकंता । पेखवि इंदभूई मन त्रिते, सुर आवे अम्ह जगन होते तीरतरंडक जिम ते वहता, समवसरण पुहता गहगहता । तो अभिमाने गोयम जंपे, इणि अवसरे कोपे तणु कंपे मूढा लोक अजाणुं बोले, सुर जाणंता इम कांई डोले। मू आगळ को जाण भणीजे ? मेरु अवर किम ओपम दीजे वस्तुछंद- वीर जिणवर वीर जिणवर नाणसंपन्न, पावापुरी सुरमहिय पत्त नाह संसारतारण , तहिं देवेहिं निम्मविय, समवसरण बहुसुखकारण ।। १५ ।। For Private And Personal Use Only

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