Book Title: Nitya Mangal aur Gautamswami Ka Ras
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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चउदह सय बारोत्तर वरसे, गोयमगणहरकेवलदिवसे,
किओ कवित उपगारपरो । आदेहि मंगल एह भणीजे, परवमहोच्छव. पहिलो कीजे,
ऋद्धिवृद्धिकल्याण करो ।। ५९ ।। धन्य माता जिणे उदरे धरिया, धन्य पिता जिणे कुल अवतरिया,
धन्य सहगुरु जिणे दिकिखया ए। विनयवंत विद्याभंडार, जस गुण कोइ न लब्भे पार,
विद्यावंत गुरु वीनवे ए ।। ६० ॥ गौतमस्वामितणो ए रास, भणतां । सुणतां लीलविलास,
सासय सुख निधि संपजे ए । गौतमस्वामिनो रास भणीजे, चउविहसंघ रलियायत कीजे,
ऋद्धिवृद्धिकल्याण करो ।। ६१ ।। इति ।। प्रतिवर्षारंभटिनेऽधुना मुनीन्द्रः समक्षमार्याणाम् । संघस्थानां . मंगलहेतुतया पठ्यते सर्वैः ।।१।। सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैन जयति शासनम् ॥२॥
॥ श्रीगौतमस्वामीरास संपूर्ण ।।
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