________________ व्यवस्था विलुप्त होने की संभावना होती है। नीतिशास्त्र की इस महत्ता को ध्यान में रखते हुए अतीत के अनुभवी महापुरुषों ने नीतिशास्त्र का निर्माण किया जिनमें कामन्दक, कौटिल्य, शुक्र और बृहस्पति तथा विदुर की नीति की विशेष ख्याति हुई। प्राचीन काल में महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का निर्माण सूत्रों और पद्यों के माध्यम से होता रहा है और यह स्वाभाविक भी था। उस समय न मुद्रण यन्त्र थे न सार्वजनिक विशाल पुस्तकालय / परिणामतः प्रत्येक विद्वान् को अपना विद्यावैभव अपने मस्तिष्क के सूक्ष्म तन्तुओं में सदा सम्बद्ध रखना पड़ता था। सूत्र . . और पद्य इसके लिये सहायक थे। सूत्रप्रणाली तो भारतवर्ष की निजी विभूति है / विशद से विशद-तत्व सूत्ररूप में मनुष्य स्मरण रख सकता है / "अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवद् विश्वतोमुखम् / अस्तोभमनवद्यं च सूत्रं सूत्रविदो विदुः॥" थोड़े अक्षरों में संशयहीन सारवान् और व्यापक अर्थ वाली विरामशुन्य निर्दोष रचना प्रणाली सूत्रप्रणाली है / अनेक गृह्य, कल्पादि सूत्रों के साथ पाणिनि के सूत्र कितने लोकप्रिय हुए और उसमें व्याकरण का समस्त तत्त्व किस प्रकार सन्निविष्ट हुआ यह किसी भी संस्कृतप्रेमी से 'अविदित नहीं है / व्यास के ब्रह्मसूत्र गौतम कणाद के न्यायवैशेषिक के सूत्र और जैमिनि के मीमांसासूत्र आदि ही तो समस्त संस्कृत वाङ्मय और समस्त भारतीय संस्कृति के मूलाधार हैं। इन सूत्रों पर भगवान शङ्कराचार्य, रामानुजाचार्य, महर्षि पतन्जलि जैसी विभूतियों ने भाष्य लिखे / इससे ही इन की महत्ता का मूल्यांकन किया जा सकता है / नीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र पर भी सूत्र रचे गये, जिन में बृहस्पति सूत्र, संभवतः दुर्लभ और प्राचीनतम है। किन्तु चाणक्य के सूत्र अब भी सर्वसुलभ हैं। कौटिल्य अर्थशास्त्र भी सूत्रमय ही है / पर व्याकरण और न्याय आदि के सूत्रों से ये भिन्न हैं। इनमें प्रायः प्रत्येक सूत्र क्रियापद से संयुक्त होकर स्वयं में पूर्ण है, जब कि व्याकरण, न्यायादि के सूत्रों में ऐसा नहीं है / किन्तु यह तो रचनाक्रम के विकास के अनुकूल हुआ है। इससे इन सूत्रों की महत्ता में कोई अन्तर नहीं आता। इसी सूत्र प्रणाली का आलम्बन कर सोमदेव ने भी नीतिशास्त्र का सुन्दर प्रणयन किया। इनके समय तक सूत्रों का अच्छा प्रचार रहा / इन्होंने मनु के एक सूत्र का उद्धरण दिया है। स्यात् वह मूल सूत्र न हो, मनु के मत का उल्लेख हो-जो मनु ने इस विषय पर दिया है / जो भी हो सोमदेव विशिष्ट प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। उन्होंने उस समय सुलभ समस्त शास्त्रों का सम्यक् अनुशीलन किया था और नीतिसम्बन्धी प्राप्य यावत् सामग्री का विशेषरूप से अध्ययन किया था। उनके विषय में वर्तमान युग के प्रसिद्ध