Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Sagarmal Jain View full book textPage 3
________________ प्रो. सागरमल जैन 1. आवश्यक-नियुक्ति 2. दशवैकालिक-नियुक्ति 3. उत्तराध्ययन-नियुक्ति 4. आचारांग-नियुक्ति 5. सूत्रकृतांग-नियुक्ति 6. दशाश्रुतस्कंध-नियुक्ति 7: बृहत्कल्प-नियुक्ति 8. व्यवहार-नियुक्ति 9. सूर्य-प्रज्ञप्ति-नियुक्ति 10. ऋषिभापित-नियुक्ति वर्तमान में उपर्युक्त दस में से आठ ही नियुक्तियाँ उपलब्ध है, अन्तिम दो अनुपलब्ध है। आज यह निश्चय कर पाना अति कठिन है कि ये अन्तिम दो नियुक्तियों लिखी भी गयी या नहीं ? क्योंकि हमें कही भी ऐसा कोई निर्देश उपलब्ध नहीं होता, जिसके आधार पर हम यह कह सकें कि किसी काल में ये नियुक्तियाँ रहीं और बाद में विलुप्त हो गयीं। यद्यपि मैने अपनी ऋषिभाषित की भूमिका में यह सम्भावना व्यक्त की है कि वर्तमान 'इसीमण्डलत्थ सम्भवतः ऋषिभापित नियुक्ति का परवर्तित स्प हो, किन्तु इस सम्बन्ध में निर्णयात्मक रूप से कुछ भी कहना कठिन है। इन दोनों नियुक्तियों के सन्दर्भ में हमारे सामने तीन विकल्प हो सकते है-- 1. सर्वप्रथम यदि हम यह माने कि इन दसों नियुक्तियों के लेखक एक ही व्यक्ति हैं और उन्होंने इन नियुक्तियों की रचना उसी क्रम में की है, जिस क्रम से इनका उल्लेख आवश्यक नियुक्ति में है, तो ऐसी स्थिति में यह सम्भव है कि वे अपने जीवन-काल में आठ नियुक्तियों की ही रचना कर पायें हों तथा अन्तिम दो की रचना नहीं कर पायें हो। 2. दूसरे यह भी सम्भव है कि ग्रन्थों के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए प्रथम तो लेखक ने यह प्रतिज्ञा कर ली हो कि वह इन दसों आगम ग्रन्थों पर नियुक्ति लिखेगा, किन्तु जब उसने इन दोनों आगम ग्रन्थों का अध्ययन कर यह देखा कि सूर्य-शप्ति में जैन-आचार मर्यादाओं के प्रतिकूल कुछ उल्लेख है और अपिभापित में नारद, भखलिगोशाल आदि उन व्यक्तियों के उपदेश संकलित है जो जैन परम्परा के लिए विवादास्पद है, तो उसने इन पर नियुक्ति लिखने का विचार स्थगित कर दिया हो। 3. तीसरी सम्भावना यह भी है कि उन्होंने इन दोनों ग्रन्थों पर नियुक्तियाँ लिखी हों किन्तु इनमें भी विवादित विषयों का उल्लेख होने से इन नियुक्तियों को पठन-पाठन से बाहर रखा गया हो और फलतः अपनी उपेक्षा के कारण कालक्रम में वे विलुप्त हो गयी हो। यद्यपि यहाँ एक शंका हो सकती है कि, यदि जैन आचार्यों ने विवादित होते हुए भी इन दोनों ग्रन्थों को संरक्षित करके रखा तो उन्होंने इनकी नियुक्तियों को संरक्षित करके क्यों नहीं रखा ? 4. एक अन्य विकल्प यह भी हो सकता है कि जिस प्रकार दर्शनप्रभावक ग्रन्थ के रूपPage Navigation
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