Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Sagarmal Jain
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दसपुरनगारे अज्जरविषय समित्य च। गुट्ठामाहिल नव अट्ठ सेसपुच्छा य विहास्स ।। पुट्ठो जना अब कंषण कंधुओं समन्नेह एवं पुट्ठमबद्धं जीवं कम्मं समन्नेइ ।। पच्चक्खाणं सेयं अपरिमाणेण होइ कायव्वं । जेसिं तु परीमाणं तं दृट्ठे होइ आसंसा। रवीरपुरे नवरे दीवमुज्जाण अजय अ सिइस्वतिमि पुकाराण कहना व
- उत्तराध्ययननिर्युक्ति, 165-178 18. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 29 19. दशवैकालिकनिर्युक्ति, गाथा 309-326 20. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 207
21. दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 161-163 22. आचारांगनिर्युक्ति, गाथा, 5
23. (अ) दशवैकालिकनिर्युक्ति, गाथा, 79-88 (ब) उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 143-144 24. जो चेव होइ मुक्खो सा उ विमुत्ति पगयं तु भावेणं । देवमुक्का साहू सव्यविमुक्ा भवे सिद्धा ।। - आवारांगना 331
25. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 497-92 26. सूत्रांगनियुक्ति, गाथा 99
27. दशवेकालिकनियुक्ति, गाथा 3
28. सूत्रकृतांगनिर्युक्ति, गाथा 127
29. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा, 267-268
30. दशाभूतस्कंधनियुक्ति गाया 1
31. तहवि य कोई अत्थो उप्पज्जति तम्मि तंमि समयंमि ।
नियुक्ति साहित्य एक पुनचिन्तन
पुव्वभणिओ अणुमतो अ होइ इसिभासिएसु जहा ।।
- सूत्रकृतनियुक्ति गाथा, 100
32. (क) बृहत्कल्पसूत्रम्, षष्ठ विभाग, प्रकाशक- श्री आत्मानन्द जैन सभा भावनगर,
प्रस्तावना, पृ. 4,5
33. वही, आमुख, पृ. 2
34. (क) मूढणइयं सुयं कालियं तु ण णया समोयरंति इहं ।
अकुत्ते समोयारी नत्थिते सोरो।।
जावंति अज्जवरा, अणुओंगे रेणाऽऽरेण पुत्त, कालिय दिवार ।।
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