Book Title: Niryukti Sahitya Ek Punarchintan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Sagarmal Jain

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Page 23
________________ प्रो. सागरमल जैन मौलिक इतिहास के लेखन में भी उसी का अनुसरण किया है। किन्तु मै उक्त दोनों के निष्कर्षों से सहमत नहीं हो सका। यापनीय सम्प्रदाय पर मेरे द्वारा ग्रन्थ लेखन के समय मेरी दृष्टि में a नई समस्यायें और समाधान दृष्टिगत हुए और उन्हीं के प्रकाश में मैने कुछ नवीन स्थापनायें प्रस्तुत की है, वे सत्य के कितनी निकट है,यह विचार करना विद्वानों का कार्य है। मैं अपने निष्कर्षों को अन्तिम सत्य नहीं मानता हूँ अतः सदैव उनके विचारों एवं समीक्षाओं से लाभान्वित होने का प्रयास करूंगा।

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