Book Title: Nirvikalp Atmanubhuti ke Purv
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 2
________________ : : 2000.. प्रथम संस्करण करण (12 सितम्बर, 2000) . मूल्य : बारह रुपए प्रकाशकीय जैनसमाज में जाने/पहचाने वयोवृद्ध मनीषी विद्वान श्री नेमीचन्दजी पाटनी जहाँ एक ओर राष्ट्रीय स्तर की बड़ी-बड़ी संस्थाओं के कुशल संचालन में सिद्ध हस्त हैं, वहीं आप जिनवाणी का स्वयं रसपान करने और कराने की भावना से भी ओतप्रोत रहते हैं। ऐसे महान व्यक्तित्व विरले ही देखने को मिलेंगे, जिन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवनकोजिनवाणी के प्रचार-प्रसार मेंसमर्पित कियाहै, पाटनीजी उनमें अग्रणीहैं। जिस उम्र में सारा जगत अपने उद्योग धंधों को आगे बढ़ाने में दिन-रात एक करते देखे जाते हैं, उस उम्र में आदरणीय पाटनीजी पूज्य श्री कानजीस्वामी के द्वारा प्रतिपादित तत्त्वज्ञान से प्रभावित होकर उस ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने हेतु घर-परिवार की ओर से अपना लक्ष्य हटाकर उद्योग-धंधों की परवाह न करके पूज्य श्री कानजीस्वामी के मिशन में सम्मिलित हो गये और अल्प समय में अपने कुशल नेतृत्व द्वारा वहाँ महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया। ज्यों-ज्यों समय बीतता गया पाटनीजी की तत्त्वज्ञान के प्रति समर्पण की भावना बढ़ती चली गयी। सन् १९६४ से जब से स्व. सेठ परनचन्दजी गोदीका द्वारा जयपुर में श्री टोडरमल स्मारक भवन की नींव रखी गयी-तभी से आप पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के महामंत्री हैं। श्री टोडरमल स्मारक भवन का वह वट बीज, जो आज एक महान वट वृक्ष के रूप में पल्लवित हो रहा है, उसमें डॉ. भारिल्ल के सिवाय पाटनीजी का ही सर्वाधिक योगदान है। __प्रस्तुत प्रकाशन के पहिले आदरणीय श्री पाटनीजी की और भी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ; जिनमें 'सुखी होने का उपाय' भाग एक से भाग आठ तक-आठ पुस्तकें आध्यात्मिक तलस्पर्शी ज्ञान के कोश हैं। यद्यपि हिन्दी भाषा साहित्य के सौंदर्य की दृष्टि से उक्त पुस्तकें भले खरी न उतरे; परन्तु भावों की दृष्टि से जैनदर्शन के मर्म को समझने/समझाने में ये पुस्तकें पूर्ण समर्थ हैं। प्रस्तुत प्रकाशन के रूप में प्रकाशित 'निर्मल आत्मानुभूति के पूर्व' नामक कृति यद्यपि उक्त आठों पुस्तकों के सार रूप में ही लिखी गयी है; परन्तु इसकी टाइपसैंटिग : जैन कम्प्यूटर मंगलधाम, जयपुर मुद्रक : जे. के. ऑफसैट प्रिन्टर्स जामा मस्जिद दिल्ली -110006 III

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