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साथ लडने आये और चेटकके द्वारा ससैन्य मारे गये । और अपने पाप कर्म के प्रभाव से निरय (नरक) गामी हुए । इसी वस्तुको भगवानने गौतम स्वामीको उनके पूछने पर निरयावलिका नामसे फरमाया है ।
कल्पातंसिका नामक द्वितीय वर्गमें दस अध्ययन हैं, इन दसौं अध्ययनोंका नाम क्रमसे - पद्म ( १ ) महापद्म ( २ ) भद्र ( ३ ) सुभद्र ( ४ ) पद्मभद्र (५) पद्मसेन ( ६ ) पद्मगुल्म (७) नलिनीगुल्म (८) आनन्द (९) और नन्दन (१०) है । प्रथम अध्ययन में पद्मकुमारका वर्णन इस प्रकार है ! पद्मकुमार भगवान महावीर स्वामीके पास मत्रजित हो पाच वर्षों तक श्रमण्य पर्याय पाली, अन्तमें मासिकी संलेखनासे साठ भक्तोंको छेदित कर काल प्राप्त हुए, और सौधर्म कल्पमें देवता होकर उत्पन्न हुए । वहाँसे च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेंगे और सिद्ध होकर सब दुखोंका अन्त करेंगे । इसी प्रकार महापद्म से लेकर नन्दन पर्यन्त नौ कुमारों का वर्णन जानना चाहिये । ये सभी भगवानके समीप प्रत्रजित हुए और संलेखनासे अपने शरीरको त्याग कर देवलोक में देव होकर उत्पन्न हुए । वहाँसे च्यव कर महाविदेह वर्ष में जन्म लेंगे और सिद्ध होकर सब दुखोंका अन्त करेंगे । ये पद्म आदि दस कुमारोंके पुत्र और महाराज श्रेणि कके पौत्र (पाते थे ।
पुष्पिता नामक तृतीय वर्ग में चन्द्र ( १ ) सूर ( २ ) शुक्र (३) बहुपुत्रिका (४) पूर्ण (५) मानभद्र (६) दत्त (७) शिव (८) वलेपक (९) अनाहत (१०) इन दसों देवोंका दस अध्ययनों में वर्णन है । ये सब भगवान महावीर प्रभुके दर्शन करनेके लिये देवलोक से अपने २ परिवार के साथ आये और अपनी वैक्रियिक शक्तिसे नाट्य विधि दिखाकर अन्तर्हित हो गये । गौतम स्वामीने उनकी विशाल ऋद्धिके बारेमें भगवानसे पूछा-हे भदन्त ! इन्हें यह ऋद्धि कहाँ से प्राप्त हुई ? भगवान ने गौतम स्वामीको चन्द्र आदि देवके पूर्वभवका वर्णन सुनाया और उन्होंने कहा- गौतम ! ये सब देवलोक से च्यव कर महाविदेह वर्ष में उत्पन्न होकर सिद्ध होंगे ।
पुष्पचूलिका नामक चतुर्थ वर्ग में भी दस देवियोंके नामसे दस