Book Title: Nirayavalika Sutra Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab View full book textPage 8
________________ अर्हत् जैन संघ आचार्य श्री सुशील मुनि जी महाराज आशीर्वचन जैनागमों के चारों अनुयोगों में निरयावलिका सूत्र “धर्म कथानुयोग' के अन्तर्गत आता है। यह अन्तकृत का उपांग शास्त्र है। उस समय जैन धर्म, जैन समाज में धर्म-पालन कैसे होता था और उस समय लोगों में मोक्ष जाने की कितनी उत्कृष्ट आकांक्षा थी और किस प्रकार राजकुमारों-रानियों ने वैभव त्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण कर अपने आत्म-लक्ष्य को प्राप्त किया इसके विस्तृत ऐतिहासिक विवरण इस सूत्र द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं। ___ श्रमण-संघ के प्रथम पट्टधर आचार्य-प्रवर श्री प्रात्मा राम जी महाराज जैन आगमों के प्रसिद्ध टीकाकार थे। उनका नाम समस्त साहित्यिक, विशेषतः प्राकृत जगत में विख्यात है। उन की अप्रकाशित कृति श्री निरयावलिका सूत्र पच्चीसवीं महावीर निर्वाण शताब्दी संयोजिका समिति पंजाब मालेरकोटला प्रकाशित कर रही है। आज के समय में ऐसे धर्म - शास्त्र का सम्पादन व प्रकाशन बहुत ही सराहनीय एवं उपयोगी है। हमारे यह पंच सम्पादक-विदुषी महासाध्वी श्री स्वर्ण कान्ता जी और उनकी मेधावी शिष्या साध्वो स्मृति जी एवं जैन जगत के प्रसिद्ध विद्वान् महामान्य श्री तिलकधर जी शास्त्री, समाज-सेवी श्री पुरुषोत्तम जैन जी, श्री रवीन्द्र जैन जी के मार्गदर्शन में इस ग्रन्थ का सम्पादन हुआ है जिसके लिये ये सभी सम्पादक धन्यवाद के पात्र हैं। हमारा ऐसा दृढ़ विश्वास है कि हमारे यह पंच सम्पादक भविष्य में भी इसी प्रकार . भगवान महावीर की विलुप्त वाणी का अनुसंधान कर उसे सम्पादित व प्रकाशित कर जिन-शासन की सेवा करते रहेंगे। अनन्त मंगल कामनाओं के साथ 12 जनवरी 1994 भाचार्य सुशील कुमारPage Navigation
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