Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

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Page 13
________________ - ( आचार्य श्री जी को आगमों की शोध करते हुए संवत् १८८० के माघ मास के कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि को रायकोट (पंजाब ] में किसी विद्वान् मुनीश्वर द्वारा निर्मित श्रुत-पुरुष का चित्र भी प्राप्त हुआ था जो इस विषय को बहुत ही सहजरीति से स्पष्ट कर देता है ) इनके अतिरिक्त कालिक र उत्कालिक श्रुत के रूप में भी आगम साहित्य का वर्गीकरण किया जाता है । निरावलिका सूत्र एक उपांग है यह जानने के अनन्तर यह परिज्ञान भी आवश्यक है कि इस सूत्र के पांचों वर्ग भी उपांग नाम से अलग-अलग प्रसिद्ध हैं जैसे कि स्वयं सूत्रकार लिखते हैं"उगाणं पंच जग्गा पण्णत्ता" - इस उपांग के पांच वर्ग भी उपांगों के नाम से प्रसिद्ध हैं । अतः इस सूत्र में पांच उपांग संकलित किए गए हैं । इस स्थान पर यह शका भी उत्पन्न हो सकती है कि कौन-कौन सा आगम उपांग है ? इस प्रश्न का समाधान सूत्र में न होने के कारण पूर्वाचार्यों ने जो कल्पना की है उसे ही विचारार्थं ग्रहण किया जा सकता है, क्योंकि औपपातिक आदि सूत्रों में किसी भी उपांग का उल्लेख नहीं है । कुछ विद्वानों की यह मान्यता भी गम्भीरता से विचारणीय है कि निरयावलिका सूत्र का विषय दृष्टिवाद नामक पूर्व से उद्धृत किया गया है, किन्तु सभी आगम-वेत्ता इस विषय से सहमत यह नहीं कहा जा सकता । निरावलिका सूत्र को पांच वर्गों में गठित किया गया है, किन्तु यदि निरयावलिका को पृथक् उपांग माना जाये तब ये छः शास्त्र सिद्ध होते हैं । नन्दी-सूत्र में कालिक सूत्रों के नामों के प्रकरण में निम्न लिखित पाठ है निरय वलियाओ, कप्पियाओ, कप्पवडसियाओ, पुष्फियाओ, पुप्फ चूलियाओ, बह्रिदसाओ । किन्तु यह विषय विद्वद्-वर्ग के लिये सर्वथा विचारणीय है, क्योंकि यदि षट् शास्त्र माने जायें तब "निरावलिका के पांच वर्ग हैं" यह कथन व्यर्थ सिद्ध हो जाता है । पांच वर्गों के विषय में निरयावलका में राजा श्रेणिक के दस पुत्रों का अधिकार दिया गया है "कल्प वडिसिया " महाराज श्रेणिक के दस कुमारों के पद्म आदि पुत्रों का अधिकार है जो दीक्षित होकर देवविमानों में उत्पन्न हुए थे । तृतीय वर्गं पुष्फिया में चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिका आदि दस अध्ययनों का विस्तृत वर्णन किया गया है। चतुर्थ वर्ग पुप्फचूला में श्री, ह्री. धृति, कीर्ति आदि दस देवियों का वर्णन है। पंचम वर्ग वहि-दशा में निषिध कुमार आदि बारह कुमारों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इस प्रकार पांच वर्गों में विभिन्न विषयों का वर्णन है। जैन धर्म प्रसारक सभा" भाव नगर से जो निरावलिका सूत्र प्रकाशित हुआ है उसकी प्रस्तावना में उपर्युक्त वर्णन के ही संकेत प्राप्त होते हैं जो विषयानुकूल हैं । [ पाँच ]

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