Book Title: Nirayavalika Sutra
Author(s): Atmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher: 25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab

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Page 16
________________ प्रवर्तिनी जैन-ज्योति, जिन-शासन प्रभाविका साध्वी श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज की प्रेरणा व दिशा-निर्देश में कार्यरत है। आज तक पंजाबी साहित्य के रूप में समिति द्वारा ४० पुस्तकें छप चुकी हैं। जिनमें अनुवाद, कथा-साहित्य व मौलिक रचनायें सम्मिलित हैं। इसी समिति के प्रयत्नों से जैन चेयर की स्थापना १९७६ में पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में हो चुकी है। इसी चेयर की देख-रेख में जैन लायब्ररी एवं आचार्य श्री आत्माराम जैन भाषण माला आदि कार्य काफी समय से चल रहे हैं । समिति द्वारा प्रकाशित भगवान महावीर का जीवन चरित्र पञ्जाबी विश्व विद्यालय पटियाला के बी. ए. (प्रथम वर्ष) में सिलेवस के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है। इसके अतिरिक्त इण्टरनेशनल पार्वती जैन एवार्ड संस्था हर वर्ष एक विद्वान का सम्मान करती है। श्री साध्वी जी महाराज सरस्वती उपासना में निरन्तर लगी रहती हैं। काफी समय से उनकी यह भावना थी कि उस अप्रकाशित शास्त्र निरयावलिका का प्रकाशन होना चाहिये, जिसका अनुवाद श्रमण-संघ के प्रथम पट्टधर आचार्य-सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज ने किया है। जैन जगत में आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज का नाम देश-विदेश में जाना-पहचाना नाम है, इस शताब्दी में जैन आगमों के प्रथम हिन्दी टीकाकार के रूप में उनका नाम प्रथम पंक्ति में आता है। उन्होंने अपना समस्त जीवन जैन साहित्य के निर्माण स्वाध्याय, प्रसार व प्रचार को समर्पित कर जन संस्कृति को गौरवान्वित किया है। हमारे आचार्य भगवान ने २० आगमों का अनुवाद किया है, जिनमें अधिकांश आगम लुधियाना में आचार्य श्री आत्माराम जैन प्रकाशन समति द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं। आचार्य श्री ने इस उपांग का अनुवाद '४६ वर्ष पहले किया था। इसकी हस्तलिखित प्रतियां आत्म-कुल-कमल-दिवाकर विद्वद्-रत्न श्री रत्न मुनि जी महाराज के पास सुरक्षित थीं। जब हमारी समिति ने पूज्य श्री रतन मुनि जी महाराज से साध्वी-रत्न श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज की भावना प्रकट की तो गुरुदेव ने सहर्ष यह अमूल्य निधि समिति को छपवाने की आज्ञा प्रदान कर दी। इस आगम को प्रकाश में लाने का मुख्य श्रेय पूज्य श्री रत्न मनि जी महाराज को प्राप्त होता है। जिसके लिए हम उनके सदैव ऋणी रहेंगे। ' फिर यह कार्य उपप्रवर्तिनी साध्वी श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज के नेतृत्व में आरम्भ हुआ, काफी परिश्रम के बाद सम्पादक यह कार्य सम्पन्न कर सके हैं। __ मैं समिति की ओर से श्रद्धेय श्री रत्न मनि जी महाराज का विशेष आभारी हूं जिन्होंने अपने गुरुदेव की पवित्र निधि हमारी समिति को सहर्ष अर्पित की। उनका आशीर्वाद ही हमारी समिति का इतिहास है। दूसरा धन्यवाद सम्पादक मण्डल का है, जिनके श्रम से यह रचना प्रकाशित हो सकी। समस्त आचार्यों एवं साधु-साध्वियों को उनके आशीर्वादों के लिए कैसे प्राभार प्रकट करूं । आशीर्वाद का क्या उत्तर हो सकता है ? साथ ही साध्वी श्री राजकुमारी जी म., साध्वी श्री सुधा जी म., साध्वी श्री वीरकांता जी म. का विशेष आभार प्रकट करता हूं। साध्वी श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज इस ग्रन्थ की मुख्य सम्पादिका ही नहीं, दिशा [भाठ]

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