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स्वामीजी की स्मृति में
कारंजा में बलात्कारगण के भट्टारकों की गद्दी की स्थापना मान्यखेट से आये हुए धर्मभूषण भट्टारक द्वारा विक्रम संवत् १५७५ में हुई थी। इस परम्परा में अबतक कोई वीस भट्टारक हो चुके हैं। इनमें से अनेक ने अपनी विद्वत्ता प्रकट करके निजाम राज्य से सनदें प्राप्त की हैं । पट्ट के स्थापित होने से बरार में जैनधर्म का जो प्रचार हुआ है उसके फलस्वरूप इस प्रान्त के प्रायः प्रत्येक नगर और ग्राम में जैन धर्म के पालक, इस गण के अनुयायी, बहुसंख्या में पाये जाते हैं। हमारे भट्टारकों का धर्मप्रचार के अतिरिक्त साहित्यवृद्धि की ओर भी पूरा ध्यान रहा है। इन्ही की कृपा से हमारे शास्त्रभण्डार में एक सहस्र से अधिक हस्तलिखित,प्राचीन ग्रन्थ सुरक्षित हैं! इनमें अनेक ग्रन्थ स्वयं हमारे भट्टारकों के रचे हुए भी हैं।
___ हमारे अन्तिम गुरुमहाराज श्री १०८ भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति स्वामी बड़े शान्तिप्रिय और साहित्यप्रेमी थे। उन्होंने अपने जीवनमें उक्त भण्डार के संग्रह को सुव्यवस्थित किया ।उनके स्वर्गवासी होनेके समय से ही उनके अनुयायिओं की उत्कट अभिलाषा थी कि उनकी कीर्ति को अक्षय और दिगन्तव्यापी बनाने के लिये उनके नाम से कोई साहित्यिक स्मारक खड़ा किया जावे । किन्तु अनेक विघ्नबाधाओं के कारण अबतक इस अभिलाषा की पूर्ति नहीं हो सकी थी। हर्ष का विषय है कि आज हमारी कई वर्षों की वह अभिलाषा पूर्ण हो रही है ।
___ गुरुमहाराज के नाम से स्थापित इस ग्रन्थमाला के संचालन के लिये हमारे पास कोई स्थायी सम्पत्ति नहीं है। पर हम यह जानते हैं कि हमारे गण के प्रत्येक सदस्य के हृदय में स्वामीजी के प्रति अटल श्रद्धा और भाक्त है । इसी को हम हमारी ग्रन्थमाला का ध्रुवफण्ड समझते हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे बन्धु इस ग्रन्थमाला के कार्य में धनाभाव की कोई रुकावट न पड़ने देंगे। जो भाई इस पुण्यकार्य में योग देंगे उनके ज्ञानावरणी कर्मों का क्षय होगा और उनका निर्मल यश इसी ग्रंथमाला द्वारा संसार में फैलेगा ।
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