Book Title: Navtattva Sangraha
Author(s): Vijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
Publisher: Samyagyan Pracharak Samiti

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Page 11
________________ १० नवतत्त्वसंग्रह ए नाम ज कही आपे छे तेम आ ग्रंथमां जीवादि नव तत्त्वोनुं स्वरूप आलेखवामां आव्यु छे, परंतु विशेषता ए छे के श्रीभगवतीसूत्र प्रमुख विविध आगमोना पाठोनी अत्र संकलना करवामां आवी छे. अनेक मुद्दानी वस्तुओ यंत्ररूपे कोष्ठक द्वारा रजू कराइ छे जेथी आ ग्रंथनी महत्तामां असाधारण वृद्धि थइ छे. आ ग्रंथना कर्ताए बार विविधवर्णी 'चित्रो वडे एने अलंकृत कर्यो छे. आ ग्रंथनी मुख्य भाषा हिंदी गणाय जोके केटलीक वार संस्कृत, प्राकृत अने गुजराती प्रयोगो एमां दृष्टिगोचर थाय छे, कोइक वेळा तो पंजाबी शब्दो पण नजरे पडे छे. आवी परिस्थितिमां तेमज अंतमां अतिशीघ्रताए आ ग्रंथ मुद्रित कराववो पड्यो तेथी मारे हाथे जे यथेष्ठ संशोधनादि द्वारा आने पूर्ण न्याय न अपायो होय तो सहृदय साक्षरो क्षमा करशे एटली मारी तेमने विनति छे. मूळ कृतिमांना आंतरिक स्वरूपमां भाग्ये ज स्वल्प परिवर्तन करवू अने ते पण खास आवश्यकता होय तो ज करवू एवी श्रीविजयवल्लभसूरिजीनी सूचना तरफ पण तेमनुं सविनय ध्यान खेंचीश. आ ग्रंथमां कया कया विषयो आलेखाया छे तेनुं निरीक्षण करवा मारी पाठकमहोदयने विशिष्ट विनति छे. मने पोताने तो एम स्फुरे छे के आ ग्रंथमां अतिसूक्ष्म वस्तुओनी भाषा द्वारा प्रथम ज गुंथणी थइ छे एटले जेमने आगमो जोवाजाणवानो शुभ प्रसंग मल्यो न होय तेमने आमांथी घणुं नवं जाणवायूँ मळशे. विशेषमां उपदेशबावनी प्रसिद्ध करवानुं वचन अपायुं हतुं नहि, छतां श्रीविजयवल्लभसूरिजीनी सूचनाने मान आपी ते सुरम्य तेमज सुश्लिष्ट पद्यमय लघु ग्रन्थने पण अत्र स्थान आपवामां आव्युं छे. ग्रन्थप्रणेतानी तेमज तेमना प्रथम शिष्यरत्न स्व. मुनिवर्य श्रीलक्ष्मीविजयजीनी प्रतिकृतिओ श्रीयुत लालचंद खुशालचंद (बालापुर) तरफथी, ग्रन्थकारना हस्ताक्षरनी तेमज प्रवर्तक मुनिराज श्रीकांतिविजयजीनी श्रीयुत दोसी कालीदास सांकलचंद (पालनपुर) तरफथी, शांतमूर्ति मुनिराज श्रीहंसविजयजीनी श्रीयुत कांतिलाल मोहनलाल (पालनपुर) तरफथी, स्व. मुनिवर्य श्रीहर्षविजयजीनी लाला मानिकचंद छोटालाल दुग्गड (गुजरांवाला) तरफथी अने श्रीविजयवल्लभसूरिजीनी श्रीयुत डाह्याभाई सूरजमल तरफथी पूरी पाडवामां आवी छे ते बदल तेमने तेमज जेमणे ए कार्य माटे पोतानी ब्लॉकोनो उपयोग करवा दीधो छे तेमने पण हार्दिक धन्यवाद घटे छे.३ अंतमां आ निवेदनने वधु न लंबावतां आ ग्रंथना प्रणेताना जीवननी जे आछी रूपरेखा हवे पछी आलेखवामां आवे छे तेमांथी उद्भवता बोधदायक पाठो जीवनमा उतारवार्नु सामर्थ्य प्रकटे एटली अभिलाषा पूर्वक विरमवामां आवे छे. भगतवाडी, भूलेश्वर, मुंबई. चारित्राकांक्षी वीरसंवत् २४५७ हीरालाल रसिकदास कापडिया. भाद्रपद कृष्ण पंचमी १. जुओ हस्तलिखित प्रतिना खास करीने पत्रांक-१६ ब, ३२ ब, ३३ ब, ३४ ब, ३७ अ, ५० अ, ५० ब, ५२ ब, ५३ अ, ५३ ब तथा ५४ अ. आ चित्रोनुं मुद्रणकार्य चित्रशाळा मुद्रणालय (पना)मां थयं छे. वळी लिथो तरीके एक फॉर्म पण त्यां ज तैयार करावायो छे. २. मारा पिता एमने पोताना गुरुदेव तरीके सन्मानता हता. ३. स्व. श्रीविजयकमलसूरि तेमज उपाध्याय श्रीवीरविजयनी पण प्रतिकृतिओने अत्र सानंद स्थान अपात, किन्तु तेने लगता ब्लॉको मेळववा पूर्ण प्रयास करवा छतां ते न मळवाथी ए इच्छा सफळ थइ शकी नथी.

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