Book Title: Navtattva Prakarana with Meaning
Author(s): Chandulal Nanchand Shah
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 215
________________ १९८ सधयार उज्जोअ, पभा छायातवेहि अ(इय)। वन गंध रसा फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥ ११ ॥ एगा कोडि सत्तसहि, लक्खा सत्तहुत्तरी सहस्सा य । दो य सया सोल हिया, आवलिया इगमुहुत्तम्मि ॥ १२॥ समयावली मुहुत्ता, दीहा पक्खा य मास वरिसा य । भणिओ पलिया सागर, उस्सप्पिणिसप्पिणी कालो ॥१३॥ परिणामि जीव मुत्त, सपएसा एग खित्त किरिया य । णिच्चं कारण कत्ता, सव्वगय इयर अप्पवेसे ॥ १४ ॥ सा उच्चगोअ मणुदुग, सुरदुग पंचिंदिजाइ पणदेहा । आइतितणुणुवंगा, आइमसंघयणसंठाणा ॥१५|| वन्नचउक्कागुरुलहु, परधा उस्सास आयवुज्जोअं । सुभखगइनिमिणतसदस, सुरनरतिरिआउ तित्थयरं ।।१६।। तस बायर पज्जतं, पत्तेज थिरं सुभं च सुभगं च । सुस्सर आइज्ज जसं, तसाइदसगं इमं होइ ॥ १७ ॥ नाणंतरायदसगं, नव बीए नीअसाय मिच्छत्त । थावरदस-निरयतिगं, कसाय पणवीस तिरियदुगं ।। १८ ।। इगबितिचउजाईओ, कुखगइ उवधाय हुंति पावस्स अपसत्थं वन्नचऊ, अपढमसंघयणसंठाणा ॥ १९ ॥ थावर सुहुम अपज्ज, साहारणमथिरमसुभ-दुभगाणि । दुस्सरणाइज्जजसं, थावर-दसगं विवज्जत्थं ॥ २०॥ इंदिअ कसाय अव्यय, जोगा पंच चउ पंच तिन्नि कमा । किरियाओ पणवीस, इमा उ ताओ अणुकमसा ।। २१ ॥ काइय अहिगरणिआ, पाउसिया पारितावणी किरिया । पाणाइवायारंभिय, परिग्गहिआ मायवत्ती अ ।। २२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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