Book Title: Navtattva Prakarana with Meaning
Author(s): Chandulal Nanchand Shah
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 219
________________ २०२ जिणसिद्धा अरिहंता, अजिणसिद्धा य पुंडरिअपमुहा । गणहारि तित्थसिद्धा, अतित्थसिद्धा य मरुदेवा ॥५६॥ गिहिलिंगसिद्ध भरहो, वकलचीरी य अन्नलिंगम्मि । साहु सलिंगसिद्धा, थीसिद्धा चंदणापमुहा ॥५७॥ . पुसिद्धा गोयमाई, गांगेयाई नपुसया सिद्धा । पत्तेय-सयबुद्धा, भणिया करकंडु-कविलाई ॥५८॥ .. तह बुद्धबोहि गुरुषो-हिया य इगसमये इगसिद्धा य । इगसमयेऽवि अणेगा, सिद्धा तेऽणेगसिद्धा य ॥ ५९ ।। ॥ इति श्री नवतत्त्वमूलम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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