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१२।१ जे भिक्खू कोलुणपडियाए अन्नयरिं०
१२।७४० जे भिक्खू अण्णयरिं० १९।१-७ जे भिक्खू वियडं०
१६७ सूत्र नहीं है। इस कार्य से ग्रन्थ की मौलिकता समाप्त हो जाती है। अतः आधारभूत ग्रन्थों के प्रति इस प्रकार के व्यवहार को अतिसाहसिक कार्य कहा जा सकता है।
पाठ-संशोधन कर लेने पर भी कहीं-कहीं प्रश्न-चिह्न रह जाता है । लिपि-दोष के कारण पाठ इतने अशुद्ध हो गए हैं कि कहीं-कहीं आशय पकड़ने में बड़ी कठिनाई होती है। नवें उद्देशक के ग्यारहवें सूत्र में 'जो तं अण्णं' पाठ है, किन्तु अर्थ की दृष्टि से विचार करने पर यह संगत नहीं लगता । 'जे भिक्खू' यह कर्ता है फिर दूसरी बार 'जो' इस कर्त-प्रयोग की आवश्यकता नहीं है। 'उववृहणिय' का अर्थ 'अशन आदि' है फिर 'अण्णं' यावश्यक नहीं है। शेष 'त' रहता है । चूणिकार ने 'तं' की ही व्याख्या की है-'तं पुण पाहुडं' । इस प्रकार यह पाठ 'अव्वोच्छिण्णाए तं पडिग्गाहेति' होना चाहिए । किन्तु चूर्णि में सब शब्द व्याख्यात नहीं हैं और पाठ-संशोधन में प्रयुक्त आदर्शों में ऐसा पाठ उपलब्ध नहीं है। इसलिए 'जो तं अण्णं' इस आलोच्य पाठ को यथावत् स्थान देना पड़ा। . लिपि-कर्ता कहीं-कहीं पाठ को बहुत संक्षिप्त कर देते हैं। जैसे कामजलंसि ठाणं साति (१३।६) । इन शब्दों के आगे अपूर्णता सूचक संकेत भी नहीं है। इस प्रकार की संक्षिप्त लिपिकप्रवृत्ति के कारण पाठ-संशोधन में अनेक कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं। समर्पण-सूत्र संक्षिप्त पद्धति के अनुसार निशीथ में समर्पण के अनेक रूप मिलते हैं
जाव-अंबं वा जाव चोयगं (१५।८)। एवं-एवं पिप्पलगाई (१।२४-२६)। अभिलावेण-एतेण अभिलावेण सो चेव गमओ भाणियव्वो जाव रएंत (३।२३-२७)। गमेण- एतेण गमेण णावागओ जलगयस्स णावागओ पंकगयस्स (१८१८-३२) ।
संख्या-असणं वा ४ (३।५)। प्रति-परिचय
(अ) जैसलमेर भंडार को ताडपत्रीय (फोटोप्रिंट), पत्र संख्या १५, अनुमानित संवत् १२वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध । (क) निशीथ मूलपाठ, चूणि (त्रिपाठी, तकार प्रधान)
यह प्रति हमारे संघीय संग्रहालय लाडनूं की है। इसके पत्र ४३ और पृ०८६ है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में ६ से ७ तक पंक्तियां हैं तथा प्रत्येक पंक्ति में ३८ से ४२ तक अक्षर हैं । प्रति के अन्त में लिखा है-“संवच्चन्द्र वसु मुनि भूमि वर्षे मिती आसोज कृष्ण अष्टम्यां तिथौ अर्कवारे श्री श्री नागौर मध्ये । श्री: श्री: श्रीः श्रीः (१७८१ सं०) (ख) निशोथ मूलपाठ, वृत्ति (पंचपाठी, यकार प्रधान)
___ यह प्रति भी उपर्युक्त संग्रहालय की है। इसके पत्र १५ तथा पृ० ३० है। प्रत्येक पत्र १० इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ में ११ से १३ तक पंक्तिया तथा पंक्तियों में ५२ से ६० तक अक्षर हैं। यह प्रति ताड़पत्रीय प्रति से प्रायः मिलती है और शुद्ध व सुवाच्य है । अन्तिम
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