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264... नाट्य मुद्राओं का एक मनोवैज्ञानिक अनुशीलन 72. शनैश्चर मुद्रा
इस मुद्रा के नाम से ही सुस्पष्ट होता है कि यह शनि ग्रह से सम्बन्धित मुद्रा है।
शनि की गति मन्द है। वह धीरे-धीरे चलता है अत: शनैः शनैः गमन करने वाला होने से इसका नाम शनैश्चर है।
__ यह मुद्रा नाटक आदि में शनि ग्रह को सूचित करती है। विधि __ दायीं हथेली को स्वयं की तरफ रखें। तर्जनी, मध्यमा और अनामिका को हल्के से पृथक करते हुए ऊर्ध्वमुख करें तथा कनिष्ठिका और अंगूठे को हथेली की तरफ मोड़ें।
बायीं हथेली को आगे की तरफ करते हुए अंगूठे को तर्जनी के निचले हिस्से के विपरीत रखें तथा तर्जनी आदि सभी अंगुलियों को सर्प के
शनैश्चर मुद्रा फण के समान मोड़ने पर शनैश्चर मुद्रा बनती है।58 लाभ
- चक्र- मूलाधार एवं अनाहत चक्र तत्त्व- पृथ्वी एवं वायु तत्त्व ग्रन्थिप्रजनन एवं थायमस ग्रन्थि केन्द्र- शक्ति एवं आनंद केन्द्र।