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शिल्पकला एवं मूर्तिकला में प्राप्त हस्त मुद्राएँ......315
कालीन बुद्ध मूर्ति में दाहिना हाथ इसी मुद्रा में है। 27 बोधगया से प्राप्त शुंगकालीन सूर्य की मूर्ति में दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है 1 28
के हाथ
भरहुत के शिल्प में राजा अजातशत्रु इसी मुद्रा में है। 29
मथुरा से प्राप्त कुषाणकालीन विष्णु, शिव, अर्धनारीश्वर, लक्ष्मी, कार्तिकेय और इन्द्र के हाथ अभय मुद्रा में है। 30
देवगढ़ से प्राप्त (पांचवी शती) शिल्प में राम का हाथ इसी मुद्रा में है। 31 माउण्ट आबू, देलवाड़ा के तेजपाल मन्दिर (12-13वीं शती) में अंकित नृत्यांगनाओं में से एक का हाथ इसी मुद्रा में है | 32 वरद मुद्रा (छवि चित्र 2)
बायां हाथ नीचे की तरफ खुला हुआ, अंगुलियाँ सीधी तथा हथेली सामने की तरफ रहती हैं तो उसे वरद मुद्रा कहते हैं। 33 छठीं शती की एक बुद्ध मूर्ति में दाहिना हाथ वरद मुद्रा में है। 34 यह मुद्रा अत्यन्त लोकप्रिय रही है यही कारण है कि इसके संकेत प्रत्येक युग में दिखाई देते हैं।
छवि चित्र-2 : वरद मुद्रा, नालन्दा से प्राप्त पाल शिल्प, ई. नवीं शती
तर्जनी हस्त मुद्रा (रेखा चित्र 3, 4, 5)
किसी हाथ की तर्जनी अंगुली ऊपर की ओर तथा शेष अंगुलियाँ हथेली की तरफ घूमी होती है तो उसे तर्जनी हस्त मुद्रा कहते हैं। 35 भरहुत से प्राप्त (द्वि.श. ई. पू.) शिल्प फलक पर एक आचार्य चार शिष्यों को शिक्षा दे रहे हैं, उनका दाहिना हाथ इसी मुद्रा में है 1 36