Book Title: Narpati Jay Charya Swaroday
Author(s): Narpati Kavi, Harivansh Kavi
Publisher: Kshemraj Krishnadas
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(७)
जयलक्ष्मीटीकासमेता। नम् ॥ मारणं मोहनं स्तम्भं विद्विषोच्चाटनं वशम् ॥५४॥ पताका पिच्छकं यंत्रं परविद्याविनाशनम् ॥ शांतिकं निजसैन्यस्य सर्वोपद्रवनाशनम् ॥ ५५॥ मंत्रयंत्रादीनां नामानि ॥ रणाभिषेचनमिति ॥५१॥ मेखलोत ॥५२॥ योगे घटितेति ॥ ५३॥ त्रासकमिति ॥ ५४॥ पताका इति ॥ ५५॥
बलान्येतानि यो ज्ञात्वा संग्रामं कुरुते नृपः ॥ असाध्यस्तस्य वै नास्ति शत्रुः कोपि महीतले ॥ ५६ ॥ इति मंत्रयंत्रौषधबलानि ॥ गणितं व्यवहारं च होराज्ञानं परिस्फुटम् ॥ त्रिस्कंधं ज्योतिषं वक्ष्ये जयचर्या स्वरोदये ॥ ५७॥ खेचरानयनं स्पष्टं पंचांगं तिथिसाधनम्।उदयास्तमनं चक्र क्रांतिविक्षेपयोः कृतिः ॥५८॥ नतोन्नतप्रमाणं च भावसंधिप्रसाधनम् ॥ ग्रहाणां षड्बलं वक्ष्ये राशिभावफलान्वितम् ॥ ५९ ॥ राशिसंज्ञाप्रभेदं च खेचराणां तथैव च ॥ नृणां जन्मफलं वक्ष्ये ऋक्षराश्यंशलग्नजम् ॥ ६० ॥
बलान्येतानीति ॥ ५६ ॥ स्पष्टार्थः ॥ इति मंत्रयंत्रौषधवलानि ॥ अथ द्वितीयस्कंधे ज्योतिषांगमाह ॥ गणितमिति ॥ ५७ ॥ खेचरानयनमिति ॥५८ ॥ नतोन्नतेति. ॥५९ ॥ राशिसंज्ञेति ॥ ६० ॥ फलं चंद्रार्कयोगानां ग्रहाणां स्वोच्चनीचकम्।।आयुयं दशाश्चैव तासां कालप्रवेशजम् ॥ ६१ ॥ तस्माल्लग्नं ग्रहान्स्पष्टान्दशांतर्दशयोः फलम्॥ग्रहवर्गाष्टकं स्पष्टं तस्मादिनफलं भवेत् ॥ ६२ ॥ ताजिकाजन्मलग्नस्य साधनं च परिस्फुटम् ॥ वर्षमासदिवालग्नं तस्मादंशास्ततः फलम् ॥ ६३ ॥ छायोत्पत्तिं त्रिधा वक्ष्ये विषुमध्यंदिनेष्टगाम्॥दिनमानं दिनं भुक्तमुदये वा घटीषु च ॥६४॥ सिद्धच्छायात्रिषाष्टिं च दुष्टभा सप्तविंशतिःलग्नोदयान स्वदेशीयांस्तेभ्यो लग्नस्य साधनम् ॥६५॥
फलं चंद्रार्कयोगानामिति ॥ ६१ ॥ तस्माल्लग्नमिति ॥ ६२ ॥ ताजिकादिति॥ ॥ ६३ ॥ छायोत्पत्तिमिति ॥ ६४ ॥ सिद्धिच्छायोत ॥ ६५ ॥
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