Book Title: Nari Chetna aur Acharya Hastimalji
Author(s): Anupama Karnavat
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 5
________________ • २३० • व्यक्तित्व एवं कृतित्व था क्योंकि स्त्रियाँ ही निर्माता होती हैं भावी पीढ़ी की और माध्यम होती हैं संस्कारों के संचार की । अतः उन्हें ज्ञान व क्रिया के अपूर्व समन्वव का सन्देश देकर उन्होंने भावी सुसंस्कृत समाज की आधारशिला रख दी थी। "क्रिया से ज्ञान का, जब नारी में होगा संगम, हर दृश्य तब पावन समाज का, निस्संदेह बनेगा बिहंगम ।" इस प्रकार आचार्यश्री ने नारी उत्थान में अपूर्व योगदान दिया किन्तु वे उसकी स्वतन्त्रता के पक्षधर थे, स्वच्छन्दता के नहीं। उसकी नैसर्गिक मर्यादा का उल्लंघन उनकी दृष्टि में वर्जित था। उनका मानना था कि नारी का कार्यक्षेत्र उसकी सीमाओं के भीतर ही वांछनीय है अन्यथा सीमा के बाहर की उपलब्धियाँ नारी की शोभा को विकृत कर देती हैं और तब वे समाज के अहित में ही होती हैं । नारी चेतना के विकास की सबसे बड़ी विडम्बना वर्तमान में यही है कि नारी की स्बतन्त्रता मात्र स्वच्छन्दता व पुरुषों के विरोध का प्रतीक बन गई है। नारी स्वतन्त्रता की दुहाई देकर महिलाएँ फैशनपरस्ती की दौड़ में सम्मिलित हो जाती हैं और पुरुषों के विरुद्ध नारेबाजी का बिगुल बजा कर स्वयं को अत्याधुनिकाओं की श्रेणी में मानकर गौरवानुभूति करती हैं। ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ हासिल कर वे समाज को रचनात्मक सहयोग नहीं देतीं, ऊँचे ओहदे प्राप्त करने के पीछे उनका उद्देश्य समाज व परिवार की आर्थिक मजबूती नहीं होता वरन् ये सब तो प्रतीक होता है उनकी झूठी शान का, बाहरी दिखावे का और भीतर में ही कहीं इस अहम् की पुष्टि का भी कि हम पुरुषों से कहीं आगे हैं और हमें उनके सहयोग की आवश्यकता कदापि नहीं । किन्तु इस मिशन के पीछे भागने की उन्हें बहुत बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है । 'कुछ' अधिक पाने की लालसा लिए वे परस्पर भी मनमुटाव कर बैठती हैं और समाज को कमजोर बना देती हैं । 'कुछ' की प्राप्ति में वे अपना 'बहुत कुछ खो बैठती हैं-अपने परिवार की सुख-शांति, समाज के सृजन की कल्पना और यहाँ तक कि स्नेह व सहयोग की भावनाएँ भी जो कहीं अन्दर ही अन्दर समाज को खोखला बना देती हैं। वस्तुतः इसीलिए आचार्यश्री नारी की ऐसी स्वतन्त्रता के पोषक कभी नहीं रहे । नारियाँ अपनी विशिष्ट पहचान बनाएँ अवश्य किन्तु किसी अन्य को हटा कर नहीं, वरन् अपना स्थान खुद बना कर, वे विचारों से आधुनिक बनें, रहन-सहन से नहीं । सादगी एवं सौम्यता निस्संदेह सफलता के बावजूद उनके व्यक्तित्व के अहम पहलू हों तो ही वे समाज के विकास में सकारात्मक योग दे सकती हैं। उनकी सीमाएँ इसमें बाधक नहीं क्योंकि त्याग, धैर्य, सहनशीलता, सृजन व उदारता के नैसर्गिक गुण उनके कार्य क्षितिज की सम्भावनाओं को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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