Book Title: Nari Chetna aur Acharya Hastimalji
Author(s): Anupama Karnavat
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 1
________________ नारी-चेतना और प्राचार्य श्री । कुमारी अनुपमा कर्णावट "कुछ नदियाँ ऐसी बढ़ी, किनारे डूब गये, कुछ बादल ऐसे घिरे, बादल डूब गये । पथ-काँटों पर आगाह हमें फिर कौन करे, जब फूलों में रहनुमा हमारे डूब गये ।।" रत्नवंश के सप्तम आचार्य परम पूज्य श्रद्धेय श्री हस्तीमलजी म. सा. को देवलोक हुए एक वर्ष होने को है, किन्तु एक अपूरित रिक्तता, एक अथाह शून्यता का अहसास आज भी हमें समेटे है। जैन समाज का एक मजबूत स्तम्भ गिर गया या फिर कह दें कि वे स्वयं पावन भूमि को नमन करने की लालसा लिए उसके आगोश में समा गये और हमेशा के लिए हमारी नजरों से ओझल हो गये, किन्तु क्या वही उनका अन्त भी था ? कदापि नहीं। जो प्रेरणा और सन्देश वे हमें अनमोल विरासत के रूप में दे गये, वे आज भी साक्षी हैं उनके अस्तित्व के और प्रतीक हैं इस विश्वास के भी कि बे यहीं हैं, हमारे मध्य, हमारे दिलों में। संयम-साधना के सजग प्रहरी, जिनका सम्पूर्ण जीवन ज्ञान और क्रिया की अद्भुत क्रीड़ास्थली रहा । उनके जीवन से जुड़े स्वाध्याय, तप, त्याग, सेवा, संयम, अनुशासन इत्यादि के अनमोल दृष्टान्त आज न केवल हमारे मार्गदर्शक हैं, वरन् समाज के विकास का प्रमुख आधार भी हैं । प्रेरणा की इन्हीं प्रखर रश्मियों के मध्य उन्होंने एक ज्योति प्रज्वलित की थी नारी चेतना की। नारी-आदि से अनन्त तक गौरव से विभूषित, समाज-निर्माण में अपनी विशिष्ट भूमिका अदा करने वाली, सदैव सम्मान की अधिकारिणी । यद्यपि कुछ विशिष्ट कालों में, कुछ विशिष्ट मतों में अवश्य ही उसे हेय दृष्टि से देखा गया, यहाँ तक कि उसे विनिमय की वस्तु भी मान लिया गया किन्तु हम उस समय भी, उसकी उपस्थिति को गौरण कदापि नहीं मान सकते । जैन दर्शन में सदैव नारी को महत्ता प्रदान की गई। उसके माध्यम से समाज ने बहुत कुछ पाया । प्रथम तीर्थकर भगवान् ऋषभदेव ने सृष्टि को Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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