Book Title: Narad ke Vyaktitva ke Bare me Jain Grantho me Pradarshit Sambhramavastha
Author(s): Kaumudi Baldota
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 16
________________ सप्टेम्बर २००९ १५९ और दूसरा अंकुरित न होनेवाले जौ । इसमें से दूसरा अर्थ यहाँ नारद को अपेक्षित है तो उन्होंने 'दयापक्ष' से लगाया है । यह नारद पशुवधरहित तथा सम्पूर्ण अहिंसावादी यज्ञ का पुरस्कर्ता है । वितथवादी पर्वतक जब स्वयं के जिह्वाछेद पर उतर आता है, तब नारद इस प्रकार की हिंसा का निषेध करता है । सगर की कथा सुनकर अन्तिमतः यह नारद प्रव्रजित होता है । ६४ अहिंसावादी, पशुयज्ञविरोधी नारद की 'प्रव्रज्या' याने 'दीक्षा' का यह उल्लेख वसुदेवहिण्डी की अपनी विशेषता है । ( ३ ) नेमिनारद : वसुदेवहिण्डी में ही 'नेमिनारद' नाम के व्यक्तिसम्बन्धित कुछ वृत्तान्त हैं । यह नारद, नेमि याने अरिष्टनेमि के तीर्थ में हुआ है । यह नारद कृष्ण, रुक्मिणी, सत्यभामा तथा प्रद्युम्न से जुड़ा हुआ है । कृष्ण-रुक्मिणी के विवाह में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है । नारद के द्वारा सत्यभामा तथा रुक्मिणी के बीच यह नारद 'कलह' नहीं खड़ा करता । इस नारद की अवज्ञा तथा अनादर किसी भी स्त्री के द्वारा नहीं होता । प्रद्युम्न के अपहरण के प्रसङ्ग में यह रुक्मिणी की मदद करता है । यह सर्वसंचारी है तथा उत्पतनी- विद्या का धारक है । वासुदेव इसके बारे में कहते हैं, "सो एस -- अम्हाणं कुलस्स अलंकारभूओ जह रिसीणं णारदो । ६५ ( ४ ) कच्छुलनारद : वसुदेवहिण्डी में कच्छल्लनारद के सम्बन्ध में एक-दो संक्षिप्त वृत्तान्त आये हैं । 'कच्छुल्लनारद' शब्दप्रयोग से लगता है कि लेखक को ज्ञाताधर्मकथा का नारद अपेक्षित है । ज्ञाताधर्म में जो असंयत, कलहप्रिय तथा भ्रमणशील नारद अंकित किया है उसकी थोडीसी झलक यहाँ दिखायी देती है । 'कच्छुल्लनारद' विशेषण को लेखक टाल नहीं सका लेकिन द्रौपदी का अपहरण, द्रौपदीद्वारा अनादर आदि सन्दर्भ उन्हें मंजूर नहीं है । एक अन्य जगह स्त्रियों द्वारा अनादर दिखाया तो है लेकिन एक नाट्यप्रयोग में बर्बरी, किराती आदि स्त्रियों के द्वारा दिखाया है । महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कच्छुल्लनारद के सन्दर्भ में लेखक कहते हैं कि, 'कच्छुलनारयस्स य विज्जाऽऽगमसीलरूवअणुसरिसा सव्वेसु खेत्तेसु सव्वकालं नारदा 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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