Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15 Author(s): Shyamsundardas Publisher: Nagri Pracharini Sabha View full book textPage 8
________________ हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय ढा दिया। जहाँ जहाँ वे गए देश वीरान, घर उजाड़, और जनसमुदाय काल के कवल हो गए। भारत की सस्य-श्यामला भृमि, विश्वविश्रुत लक्ष्मी और जनाकीर्ण देश ने बहुत शीघ्र मुसलमानों को प्राकृष्ट कर लिया। यहां उन्हें धर्म-प्रसार और राज्य-विस्तार दोनों की संभावना दिखाई दी । निरपेक्षता, तत्त्वज्ञान और विभव की इस भूमि की भी धौध-विश्वासियों के लोभ-प्रेरित विनाशकारी हाथों ने वहीदशा करने का प्रायोजन किया जो उनसे प्राक्रांत और देशों की हुई थी। नर-नारी, बाल-वृद्ध, विद्या-भवन पुस्तकालय, देवालय और कलाकृतियाँ कोई भी इतनी पवित्र न समझो गई कि नाश के गहर में जाने से बच सकती । यद्यपि हिंदुओं ने प्रासानी से पराजय स्वीकार न की और वे अंत तक पद पद पर दृढ़ता से विरोष करते रहे वयापि उनकी निश्छल निर्भयता, धर्मयुद्ध की भावना, पराजित शत्रु के प्रति क्षमाशोल उदारता तथा अनेक अंधविश्वासों ने मिलकर उनकी पराजय का कारण उपस्थित कर दिया; और उन्हें काल की विपरीतता के मागे सिर झुकाना पड़ा। महमूद गजनवी के बारह और मुहम्मद गोरी के दो-तीन आकमण प्रसिद्ध ही हैं। गजनवी के साथ अल-बेरूनी नामक एक प्रसिद्ध इतिहासकार प्राया था। उसने अपने प्राश्रयदाता के संबंध में लिखा है कि उसने देश के वैभव को पूरी तरह से मटियामेट कर दिया और अचरज के वे कारनामे किए जिनसे हिंदू धूल के चारों ओर फैले हुए कण मात्र अथवा लोगों के मुंह पर की पुराने जमाने की एक कहानी मात्र रह गए । वास्तविक युद्ध में तो प्रसंख्य वीरों की मृत्यु होती ही थी, उनके अतिरिक्त भी प्रायः प्रत्येक नृशंस विजेता हजारो-लाखो व्यक्तियों की हत्या कर डालता था और हजारों को गुलाम बना लेता था । (१) ईश्वरीप्रसाद की 'मेडीवल इंडिया', पृ०१२ में दिपा हुआ अवतरण' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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