Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 15
Author(s): Shyamsundardas
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 19
________________ १४ नागरीप्रचारिणो पत्रिका विभव से अपनी दृष्टि मोड़ ली, और उस एक मात्र आनंद को प्राप्त करने के लिये जिससे उन्हें वंचित रख सकना किसी की सामर्थ्य में नहीं था, वे वैष्णव प्राचार्यो द्वारा प्रचारित इस भक्ति की धारा में उत्सुकता के साथ डुबकी लगाने लगे। ___इस प्रानंद का उद्रेक देश के विभिन्न भागों से कवियों की मधुर वाणी में छलक छलककर बहने लगा। बंगाल में उमापति (१०५० वि० सं०) और जयदेव (१२२० वि० सं०) अपने हृदय के मृदुल उद्गारों को दिव्य गीतों में पहले ही प्रकट कर चुके थे। जयदेव के जगत्प्रसिद्ध गीतगोविंद के राधामाधव के क्रीड़ा-कलापों की प्रतिध्वनि मैथिल कोकिल विद्यापति (१४५० वि० सं०) की कोमल-कांत 'पदावली' में सुनाई दी। गुजरात में नरसी मेहता ने, मारवाड़ में मीराबाई ने, मध्यदेश में सूरदास ने और महाराष्ट्र में ज्ञानदेव, नामदेव और तुकाराम ने इस भक्तिमूलक आनंद की अजस्र वर्षा कर दी। इससे हिंदुओं को प्रतिरोध की एक ऐसी निष्क्रिय शक्ति प्राप्त हुई जिसने उन्हें भय की उपेक्षा, अत्याचारों का सहन और प्राणांतक कष्टों को सहते हुए भी जीवन धारण करना सिखाया। इस प्रकार जो जाति नैराश्य के गर्त में पड़कर जीवन की आशा छोड़ चुकी थी उसने वह सत्त्व संचय कर लिया जिसने क्षीण होने का नाम न लिया । भगवान के दिव्य सौंदर्य से उदय होनेवाला आनंदातिरेक निष्क्रिय शक्ति का ही रूप धारण करके नहीं रह गया। उसने दैत्य-विनाशिनी क्रियमाण शक्ति का रूप भी देखा। तुलसीदास ने पुरानी कहानी में इसी अनंत शक्ति से संयुक्त राम को अपने प्रमोघ बाण का संधान किए हुए अन्यायो रावण के विरुद्ध खड़ा दिखाया। भक्त-शिरोमणि समर्थ रामदास ने तो आगे चलकर शिवाजी में वह शक्ति भर दी जिसने शिवाजी को भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट स्थान दिला दिया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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