Book Title: Mukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 148
________________ १४६ / मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य जितना निर्मल है, उतना निर्मल गंगा का पानी नहीं है । जैसे-जैसे गंगा का विस्तार हुआ है, वैसे-वैसे इसमें मिश्रण होता गया है। ध्यान और योग-साधना की भी यही बात है । आज ध्यान- केन्द्रों के अनेक मठाधीश हैं जो भगवान् बनकर पूजा प्राप्त कर रहे हैं। अनेक ध्यान-केन्द्रों में विशुद्ध ध्यान-साधना में मिलावट हो रही है। अभीअभी अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कुछेक आश्रमों की गतिविधियों के चित्र छपे हैं। यह सारी गंदगी ध्यान के नाम पर आ रही है, ऐसा ज्ञात हुआ । यदि यह कोई युवकों को पथभ्रष्ट करने वाली कथा होती तो भी मुझे नहीं अखरता । किन्तु यह सब हो रहा है 'समाधि' के नाम पर । समाधि ध्यान की अंतिम अवस्था है । उसको व्यर्थ साबित करने के लिए अथवा अपनी वासना को चरितार्थ करने के लिए, कुछ तथाकथित भगवान्, संभोग को समाधि के साथ जोड़ रहे हैं, या यों कहा जाए कि समाधि को संभोग के साथ जोड़ रहे हैं। प्राचीन आचार्यों ने साधना की जिन-जिन अवस्थाओं से गुजर कर समाधि को प्राप्त किया था, उन साधनों को आज वे नकार रहे हैं । वे आज के भगवान् संभोग से समाधि को प्राप्त करने की बात कह रहे हैं । समाधि- प्राप्ति का आज एकमात्र साधन है— संभोग | अध्यात्म की यह बड़ी-से-बड़ी विडम्बना है । इतिहास में ऐसी विडम्बना न पहले सुनी, न देखी । 1 सबसे बड़ा पाखण्ड भारत में वाम मार्ग की साधना बहुत पुरानी है । अनेक शताब्दियों तक तांत्रिक प्रयोग चले । मदिरा, मांस, मैथुन आदि पांच मकार चले। किसी अध्यात्मवादी ने उसका समर्थन नहीं किया। पहले उसकी कार्य-प्रणाली अत्यन्त गुह्य रखी जाती थी । आज ऐसा कुछ भी नहीं है । अनेक योग आश्रमों में अश्लील प्रयोग करवाये जाते हैं, सामूहिक संभोग से समाधि अवस्था प्राप्त होने का आश्वासन दिया जा रहा है। ओह ! कितनी विडम्बना ! अध्यात्म के नाम पर इससे बड़ा पाखण्ड और क्या हो सकता है ? जो व्यक्ति भारतीय संस्कृति की विकृति से परिचित नहीं हैं, अध्यात्म की पवित्र भावना से अनजान हैं, वे लोग इन सब बातों में फंस जाते हैं । किन्तु भारतीय लोग समाधि की पवित्रता से परिचित हैं, समाधि की शक्ति को जानते हैं, वे इस भुलावे में आकर इतनी घृणित प्रवृत्तियों में अपनी शक्ति का व्यय करना नहीं चाहेंगे । मनुष्य में दो प्रकार की वृत्तियां होती हैं— मौलिक और अर्जित । आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा - ये चार मौलिक वृत्तियां हैं । अध्यात्म के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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