Book Title: Mukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 161
________________ चिर यौवन का रहस्य । १५९ इतना संक्रमण हो गया कि सारी सीमाएं विलीन हो गयीं। जितने बेरियर थे वे सारे टूट गए। ऐसे संक्रमणशील समाज में जीने वाला युवक कौन-सा आचार का पालन करे? किन वर्जनाओं को मान्यता दे ? कठिन समस्या है। इस समस्या का हल यह है कि यदि उसमें प्रतिस्रोत में चलने की भावना जागे तो वह अनेक अनैतिकताओं से बच सकता है अन्यथा नहीं। प्रेक्षा-ध्यान के द्वारा प्रतिस्रोतगामिता का भाव पैदा होता है। आदमी हमेशा आंख खोलकर देखता है। यदि वह आंख मूंदकर देखने का अभ्यास करे तो उसमें प्रतिस्रोत की वृत्ति पैदा होती है। जब आदमी बाहरी संगीत को छोड़कर भीरती संगीत को, नाद को सुनने का प्रयास करता है तो उसमें प्रतिस्रोत की भावना जागत होती है। आदमी दसरों को देखने में रस लेता है। जहां कही जायेगा वह दूसरों को ही देखेगा। धर्म-स्थान में आने वाले भी दूसरों को अधिक देखते है वे साधुओं के छिद्र देखने में बड़ा रस लेते है। धर्म-स्थान आत्म-निरीक्षण का स्थान होता है। वहां भी आदमी पर-निरीक्षण करता है । कैसी विडम्बना ! निरन्तर दूसरों को देखने के कारण आदमी की दृष्टि ऐसी बन गयी कि वह अपने आपको देखना ही भूल गया। यह है दीये तले अंधेरा। आदमी भूल ही गया कि उसे अपने आपको भी देखना चाहिए। प्रेक्षा-ध्यान अपने आपको देखने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया प्रतिस्रोत की चेतना का निर्माण करती है जिससे यह फलित होता है कि दूसरों को देखना बंद करें और स्वयं को देखें । हम बार-बार यह दोहराते हैं'स्वयं स्वयं को देखें। अपने आपको देखने के लिए ही प्रेक्षा-ध्यान का अभ्यास करें।' ये सूत्र इसलिए बार-बार दोहराए जाते हैं कि हमारे भीतर प्रतिस्रोत चेतना का निर्माण हो । इस चेतना के निर्माण से व्यक्ति युवा रह सकता है, अन्यथा नहीं। परिस्थितिवाद : एक विपर्यय आज एक नये दर्शन का उदय हुआ है। उसका नाम है-परिस्थितिवाद । इसके आधार पर माना जाता है कि जो कुछ होता है सारा परिस्थितिजन्य ही होता है। व्यक्ति का उसमें कोई दोष नहीं हैं। इस प्रकार सारा दोष परिस्थिति पर ही लाद दिया जाता है । व्यक्ति से पूछा- 'तुमने लड़ाई क्यों की? यह अप्रामाणिकता का बर्ताव क्यों किया? गालियां क्यों दी?' वह सीधा-सा उत्तर देगा- 'मैं क्या करता? ऐसी परिस्थिति में इसके सिवाय कोई चारा ही नहीं था। मेरे स्थान पर यदि तुम होते तो तुम भी ऐसा ही बर्ताव करते।' इस प्रकार अपने आपको निर्दोष और पवित्र प्रमाणित करने के लिए आदमी ने परिस्थिति का एक ऐसा चोला पहन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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