Book Title: Mukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 162
________________ ६० । मुक्त भोग की समस्या और ब्रह्मचर्य खा है कि सारा दोष परिस्थिति पर मढकर निश्चिन्त हो जाता है। इस प्रकार उनुष्य परिस्थिति को मुख्य और अपने अस्तित्व को गौण मानकर चल रहा है। वह अपने कर्तृव्य को गौण और परिस्थिति को मुख्य मानता है । यह एक विपर्यय है। जहां यह विपर्यय काम करता है वहां समस्याओं का कभी अंत नहीं हो सकता। ।क्षा-ध्यान के द्वारा एक ऐसी चेतना का निर्माण किया जाता है कि उसमें परिस्थिति यं और व्यक्ति का कर्तव्य प्रथम हो जाता है। उससे गौण को गौण और मुख्य को मुख्य मानने की चेतना विकसित होती है। यह सच है कि व्यक्तित्व के निर्माण में परिस्थिति का भी योग है । पर वह गौण, मुख्य योग नहीं है। हम प्रेक्षा-ध्यान के अभ्यास से प्रतिस्रोत की चेतना का निर्माण करें, प्रतिस्रोत की चेतना के द्वारा परिस्थितियों को समझने और झेलने में हम सक्षम हों और उन पर हम अपना स्वामित्व स्थापित करें। युवा वह होता है जिसमें परिस्थिति को झेलने की क्षमता होती है, परिस्थिति को ठुकराने की क्षमता होती है और अपने स्वामित्व को प्रतिष्ठापित करने की क्षमता होती है। प्रेक्षा-ध्यान चिर यौवन का महत्त्वपूर्ण उपाय है। जो साधक-प्रेक्षा ध्यान की अभ्यास-भूमिका में आते हैं, अपने आपको उसके प्रति समर्पित किए रहते हैं वे अनुभव कर सकते हैं कि उनका यौवन कितना स्थायी, कितना चिरजीवी और वशाल हो गया है और वे समाधि-मृत्यु के क्षण तक यही अनुभव करेंगे—'मैं बूढ़ा नहीं हूं । मैं युवा हूं, मैं युवा हूं, मैं युवा हूं।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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