Book Title: Mukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 152
________________ चिर यौवन का रहस्य मनुष्य की शाश्वत कामना है— 'जीवेम शरदः शतम् — मैं सौ वर्ष तक जीता हूं।' प्राचीनकाल में जीवन की सामान्य सीमा थी सौ वर्षों की । प्राचीन आचार्यों ने इस सीमा को दस अवस्थाओं में बांटा है । जीवन की दस अवस्थाएं हैं । आदमी जन्म लेता है । बच्चा होता है, युवा बनता है, बूढ़ा होता है और फिर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । बच्चा होना कोई चाहता नहीं । यह चाह का विषय नहीं है । यह प्रश्न नेयति का है । तीन अवस्थाएं हैं - बचपन, यौवन और वृद्धत्व । बचपन चाह का I वेषय नहीं है, बच्चा युवा होना चाहता है । यौवन चाह का विषय है । युवा बूढ़ा बनना नहीं चाहता । वृद्धत्व चाह का विषय नहीं है। बूढ़ा न होने के लिए आदमी ने बहुत प्रयत्न किए हैं। अनेक औषधियों और पद्धतियों का आविष्कार कर यह पूरा प्रयत्न किया गया कि आदमी बूढ़ा न बने । आयुर्वेद ने कायाकल्प की पद्धति वलायी जिससे कि आदमी चिर युवा रह सके, बूढ़ा भी युवक बन जाए। आदमी बूढ़ा इसलिए होता है कि उसके शरीर की कोशिकाएं नष्ट अधिक होती हैं, नयी कोशिकाओं का निर्माण नहीं होता । शरीरशास्त्रीय दृष्टि से जो आदमी शक्ति का त्र्यय कम करता है, ऊर्जा को कम खर्च करता है, नयी कोशिकाओं को निर्मित होने का अवकाश देता है, वह बूढ़ा नहीं होता, जल्दी बूढ़ा नहीं होता । इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य सदा युवा रहना चाहता है । प्रेक्षा ध्यान को हम इस दृष्टि से देखें कि उससे चिर यौवन को सुरक्षित रख जा सकता है। उसे स्थायी बनाया जा सकता है । आगमकार कहते हैं कि देवता कभी बूढ़े नहीं होते । वे सदा मध्यम वय में ही रहते हैं । तीर्थंकर युवावस्था में ही निर्वाण को प्राप्त होते हैं। संभवतः व्याख्याकारों ने यह मान लिया कि मध्यम आयु में ही तीर्थंकरों को निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है । इसका सीधा अर्थ है कि तीर्थंकर कभी बूढ़े नहीं होते। जो सिद्धयोगी होते हैं वे कभी बूढ़े नहीं होते । कोई भी वीतराग व्यक्ति बूढ़ा कैसे होगा ? बुढापा लाने वाली सारी स्थितियां वहां समाप्त हो जाती हैं। इसलिए वीतराग, केवली या तीर्थं - कर कभी बूढ़े नहीं होते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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