Book Title: Mukta Bhog ki Samasya aur Bramhacharya
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 157
________________ चिर यौवन का रहस्य | १५५ देखता है वह कभी बूढ़ा नहीं होता । प्रेक्षा-ध्यान का अर्थ है-वर्तमान में जीना, वर्तमान को देखना । ल अतीत में जीना और न भविष्य में जीना, केवल वर्तमान में जीना । जो वर्तमान में जीता है, जिसने वर्तमान को पकड़ रखा है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता। सबसे कठिन है वर्तमान को पकड़ पाना । जिसने वर्तमान को पकड़ लिया, उसने सचमुच महान् सत्य को पा लिया। साइप्रस में काल देवता की एक मूर्ति बनी। वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उस मूर्ति के अगले भाग में सघन केश दिखाये गए हैं और पीछे के भाग में वह मुंड है, एक भी केश नहीं है । वह मूर्ति काल-समय का वास्तविक ज्ञान कराती है। समय सामने से आता है। वर्तमान आता है । जिसने उसको आगे से पकड़ लिया, वह जीत गया । पीछे से उसे पकड़ा नहीं जा सकता। अतीत व्यर्थ है। उसे नहीं पकड़ा जा सकता। वर्तमान ही यथार्थ है। अतीत बीत चुका। वह अयथार्थ हो गया। भविष्य प्राप्त नहीं है। वह भी अयथार्थ है। वर्तमान को पकड़ना, समझना ही सत्य को पकड़ना है, समझना है। पटुता का तारतम्य प्रेक्षा-ध्यान वर्तमान में जीना सिखाता है । वर्तमान में शरीर में जो कुछ घटित होता है, जो चंचलता हो रही है या जिन कारणों से चंचलता हो रही है, उनको देखना ही प्रेक्षा-ध्यान है। शरीर की संरचना बहुत ही जटिल और सूक्ष्म है। एकएक सेल की संरचना भी बहुत सूक्ष्म है । दस दिन के अभ्यास मात्र से शरीर को पूरा नहीं समझा जा सकता। लम्बे अभ्यास से ही हम उससे कुछ परिचित हो सकते हैं। साधकों में देखने-पकड़ने की तरतमता होती है। एक प्रश्न कई बार सामने आता है कि शिविरों में वे लोग भी आते हैं जो पहली बार प्रेक्षा का अभ्यास करने के इच्छक हैं और वे लोग भी आते हैं जिन्होंने लम्बे समय तक प्रेक्षा का अभ्यास कर लिया है। दोनों में संगति कैसे हो सकती है? यह कोई जटिल समस्या नहीं है । जो व्यक्ति मतिज्ञान और श्रुतज्ञान की सूक्ष्मताओं को जानता है, वह ऐसे प्रश्नों में नहीं उलझता। वह जानता है कि एक व्यक्ति के ज्ञान में और दूसरे व्यक्ति के ज्ञान में अनन्त गुना तारतम्य होता है। सबका पाटव या कौशल एक समान नहीं होता। वह व्यक्ति-व्यक्ति में विसदृश होता है। आज जो एक व्यक्ति प्रेक्षा का अभ्यास प्रारंभ करता है वह बहुत स्थूल पर्यायों को ही पकड़ पाता है। जिस व्यक्ति ने बहुत बार अभ्यास कर लिया वह आगे से आगे इतनी सूक्ष्मताओं को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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