Book Title: Muhurt Chintamani Satik
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निःकर्षकोबाजवपतिदैवंचवर्षतिनदाफलमाधिक मुपगते एवंदैतपुरमसायो समयोर्यरा, लिसिड्योदृश्यते अबार्थेषाव्यासमुरखोगताइमेलौका नविनामानुषंदैवादेवंवामानुपाहि ना नैकोनिवर्तयत्यर्थमेकारणिरिवानलमिति केचिदुद्धिः कर्मानुसारिणीतिमन्यमानाःमय लोपिदैवरूपइतिहत्वादैवमेवफलसिद्धेः कारणमितिवदंतितन्न अनवस्थादोषपसंगातु त थाहि पाकर्मार्जितपौरुषमेवकिलदेवशब्देनोयते अत्रयःप्रयत्नःप्राचीनपौरुषलक्षणेन देवेनजन्यते तदपितत्पाचीनपौरुषजन्यमित्यनवस्थाइतःप्रयत्नौपिदैवमेरितइत्यनुपपन्न म् ननुबीजांकरन्यायेनानवस्थादोषोनभविष्यतीनिचेत्ननहिबीजांकुरन्यायनदेवमेवमू लमितिनिश्चीयतेनापि यत्नः अतःसत्काययोगेफलसिद्धिरितितत्वम् एवंचेत्तर्हिपूर्वोक्ता नांशौनकादिवाक्यानाम् येनत्यत्यासव्यंनस्यविपाकंसरेशसचिवोपि यःसाक्षातषियनिजः सोपिनशक्तोऽन्यथाकतुमित्यादिकानांकागतिः उच्यते देवंतुहटकर्मजमहटकर्मजंचेनिहि। विधंतत्रहढकर्मजस्यावश्यमाविखादहशास्यादिरूपापूर्वप्रयत्नादपितन्निवारयितुंनशक्यतेदमूलंखार प्रबलवाताघातेपिदृढमूलपादपवत् अहदकर्मजंतुदैवषयत्नेननिवर्त्य मनिशिथिलमूलादपबत्तयाजात धर्मकर्मनिरताविजिनेद्रियायेयेपथ्यशोजनजपोहिज देवभक्ता:लोकैनरादधतियेकलशाललालांतेषामिदंकथितमायुरुदारधाभिरिति प्रयत्नामा वेतुविपच्यते तथाचतत्रैव पापिष्ठायेदुराचारादेवबाह्मणनिंदकाः अपथ्यमोजिनस्तेषामका For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 355