________________
भगवान् ऋषभनाथ : कायोत्सर्ग-मुद्रा में
वृषभ, मदु लता, भरत और सात मंत्री आदि महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं । जैन वाङ्गमय से इन तथ्यों की पुष्टि होती है।४ इतिहासवेत्ता श्री राधाकुमुद मुकर्जी ने भी इस तथ्य को माना है ।१५ मथुरा-संग्रहालय में भी ऋषभ की इसी तरह की मूर्ति सुरक्षित है । १६ श्री पी. सी. राय ने माना है कि मगध में पाषाणयुग के बाद कृषियुग का प्रवर्तन ऋषभयुग में हुआ।
श्री चन्दा ने जिस सील का विस्तृत विवरण दिया है, वह परम्परा जैन साहित्य में आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित है। प्राचार्य वीरसेन द्वारा रचित 'धवला'१८, विमलसूरि द्वारा रचित प्राकृत ग्रन्थ 'पउमचरियं'१६ एवं जिनसेनकृत 'आदिपुराण'२० को कारिकाओं/ गाथानों में जो वर्णन मिलते हैं उनमें तथा उक्त सील में बिम्बप्रतिबिम्ब भाव देखा जा सकता है । इन वर्णनों के सूक्ष्मतर अध्ययन से पता चलता है कि इस तरह की कोई मुद्रा अवश्य ही व्यापक प्रचलन में रही होगी; क्योंकि मोहन-जो-दड़ो की सील में अंकित प्राकृतियों तथा जैन साहित्य में उपलब्ध वर्णनों का यह साम्य आकस्मिक नहीं हो सकता। निश्चय ही यह एक अविच्छिन्न परम्परा की ठोस परिणति है। यदि हम पूर्वोक्त ग्रन्थों के विवरणों को सील के विवरणों से समन्वित करें तो संपूर्ण स्थिति की स्पष्ट व्याख्या इस प्रकार संभव है :
पुरुदेव (ऋषभदेव) नग्न खड्गासन कायोत्सर्ग मुद्रा में अवस्थित हैं उनके शीर्षोपरि भाग पर त्रिशूल अभिमण्डित है यह रत्नत्रय की शिल्पाकृति है कोमल दिव्यध्वनि के प्रतीक रूप एक लता-पर्णमुखमण्डल के पास सुशोभित है२१ दो ऊध्वर्ग कल्पवृक्ष-शाखाएँ हैं पुष्प-फलयुक्त, महायोगी उससे परिवेष्टित हैं यह भक्ति-प्राप्य फल की द्योतक है चक्रवर्ती भरत भगवान् के चरणों में अंजलिबद्ध प्रणाम-मुद्रा में नतशीश है२२ भरत के पीछे वृषभ है, जो भगवान् ऋषभनाथ का चिह्न (लांछन) है अधोभाग में हैं अपने राजकीय गणवेश में सात मन्त्री
मोहन-जो-दड़ो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org