Book Title: Mohan Jo Dado Jain Parampara aur Praman
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 22
________________ तरह की कथाओं का अभाव है। सिन्धुघाटी की सभ्यता में एक वाणिज्यिक कॉमनवेल्थ (राष्ट्रकुल) का अनुमान लगता है। तथ्यों के विश्लेषण से पता लगता है कि जैनों का व्यापार समुद्र-पार तक फैला हुआ था। उनकी हुंडियां चलती/सिकरती थीं। व्यापारिक दृष्टि से वे 'मोड़ी' लिपि का उपयोग करते थे। यदि लिपि-बोध के बाद कुछ तथ्य सामने आये तो हम जान पायेंगे कि किस तरह जैनों ने पाँच सहस्र पूर्व एक सुविकसित व्यापार-तन्त्र का विकास कर लिया था।३५ इन सारे तथ्यों से जैनधर्म की प्राचीनता प्रमाणित होती है । प्रस्तुत पुस्तिका मात्र एक प्रारंभ है; अभी इस संदर्भ में पर्याप्त अनुसंधान किया जाना चाहिये। राजसी गणवेश में एक मन्त्री [टिप्परिणयां : देखिये; परिशिष्ट २, पृष्ठ २३] मोहन-जो-दड़ो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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