Book Title: Marvad Chitrashaili evam jain Vignapati Patra
Author(s): Madhu Agarwal
Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf

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Page 5
________________ मारवाड़ चित्रशैली एवं जैन विज्ञप्ति पत्र २४९ मिल पायी। इनकी शैली मारवाड़ के सचित्र हस्तलिखित ग्रन्थों में भी मिलती है। जोधपुर, प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में संग्रहीत १७८८ में चित्रित मारवाड़ के पाली ठिकाने पर चित्रित मधुमालती प्रति में भी मथेन सीवराम का नाम मिलता है। इससे यह तथ्य स्पष्ट होता है कि ये चित्रकार दोनों स्थानों पर चित्र बनाया करते थे । जयपुर के कुं० संग्राम सिंह के अनुसार जैन सूरि के साथ इस घराने के चित्रकार रहते थे। इस परे खंड में प्रवचन का शांत स्थिर वातावरण है। साधु-साध्वियों के चेहरे आध्यात्मिक भावों से युक्त हैं। चेहरे गहरे रंग के हैं। मारवाड़ के पोकरण, आसोप आदि ठिकानों में भी चेहरे गहरे वर्ण के चित्रित होते रहे हैं। ___ यह पत्र निश्चित रूप से १८वीं शदी के उत्कृष्ट चित्रों में से एक है। यद्यपि इसमें - बारीकी एवं नफासत नहीं है फिर भी ये चित्र कुशलता पूर्वक चित्रित किये गये चित्रों के अत्यंत उत्कृष्ट उदाहरण हैं। तकनीकी दष्टि से भी ये काफी परिष्कृत हैं। रेखाएँ सशक्त वेगवान एवं प्रवाहमय हैं। साफ सुथरा पूर्ण चित्रण है। मारवाड़ शैली के विकास एवं विज्ञप्ति पत्रों की परम्परा-दोनों में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। १९वीं शती में इनका चित्रण बहत बड़ी संख्या में होने लगता है। इस काल में ऐसे कुछ पत्र मिले हैं जिनमें विशिष्ट आकृतियों के चित्रण पर ही ध्यान दिया गया है । प्रमुख आकृतियों का समकालीन उत्कृष्ट दरबारी चित्रों के समतुल्य चित्रण हुआ है। पर सहायक आकृतियों का अत्यंत सामान्य कोटि का चित्रण हुआ है। सम्भवतः यह प्रतिपालक के आदेश एवं रुचि पर निर्भर करता होगा। अहमदाबाद के ढेहला जैन उपाश्रय भंडार में संग्रहीत विज्ञप्ति पत्र (डी. ए. नं. २००) इस वर्ग का एक उल्लेखनीय उदाहरण है । यह पत्र १८२५ ई० में जोधपुर से अहमदाबाद के श्री विजय जी को लिखा गया था । यह महाराजा मानसिंह के काल में चित्रित हुआ है । पत्र में चित्रित जैन साधु (चित्र-४) का भरा गोल चेहरा, ठुड्डी, नुकीली नाक, बड़ी-बड़ी नुकीली आंखें समकालीन नाथ संप्रदाय के नाथ गुरुओं के चित्रों की भांति चित्रित हुई हैं। इस पत्र में प्रमुख चित्रों के अंकन में रेखाएँ सशक्त हैं । भावनापूर्ण चित्रण हुआ है। जैन साधु के मुख पर आध्यात्मिक भावों के साथ-साथ प्रसन्न सहज एवं शांत भाव है। सामने प्रवचन सुन रहे व्यक्तियों के समूह एवं पोछ खड़े सेवक की घनी दाढी, मँछ, गलमुच्छे, बड़ी-बड़ी आँखें, ऊँची पगड़ी का चित्रण दरबार में चित्रित होने वाले लघु चित्रों, हस्तलिखित सचित्र ग्रंथों एवं इन पट्टों में एक जैसा है। यहाँ रेखाएँ कमजोर हैं। इनमें टूट है। इसी खंड में जैन आचार्यों के नीचे के पैनल में चित्रित साधु-साध्वियों का बेजान एवं भावहीन चित्रण हुआ है। सम्मुखदर्शी जैन साधु का चित्रण १८वीं सदी के सिरोही चित्रशैली के उपदेशमाला प्रकरण की प्रति के चित्रों से मिलता है। इनके समक्ष चित्रित स्त्रियों के समूह का विविधतापूर्ण चित्रण हुआ है । यह निम्नकोटि का अनाकर्षक चित्रण है । आकृतियाँ ठिगनी हो गई हैं। सबसे आगे वाली स्त्री की कान तक खिची लम्बी आँखें, भौंहे व चपटे गाल एवं ठड़ी, छोटी नाक परम्पराबद्ध नारी चित्रण से भिन्न है। साधारणतया मारवाड चित्रशैली में लम्बी आंखें ऊपर की ओर उठी होती हैं। अधमुंदी बड़ी-बड़ी घनी पलकों के साथ चेहरे पर सौम्य भाव होते हैं। ठिगनी स्थूल आकृतियाँ इस काल में बहुत कम चित्रित हुई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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