Book Title: Marvad Chitrashaili evam jain Vignapati Patra Author(s): Madhu Agarwal Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 3
________________ मारवाड़ चित्रशैली एवं जैन विज्ञप्ति पत्र २४७ चित्रित होने वाले चित्रों जैसी बारीकी, नफासत एवं भव्यता इनमें नहीं पायी जाती, परन्तु शैलीगत समानता होती ही है। ये समकालीन दरबारी चित्रों से प्रभावित हैं और शैली के विकास की विवेचना में इनका भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। दरबार में शैली के उत्तरोत्तर पतन के साथ हम इनका भी ह्रासमान रूप देखते हैं। मारवाड़ चित्रशैली के कालक्रम निर्धारण में मारवाड़ की राजधानी जोधपुर एवं अन्य नगरों से पाये गये इन निमन्त्रण पत्रों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। १९वीं शती के मध्याह्न के बाद अन्य केन्द्रों की भांति दरबार में भी चित्रों के प्रति उदासीनता बरती जाने लगी। धीरे-धीरे चित्रकला की परम्परा लप्त होने लगी है। पतन के इस दौर में २०वीं सदी के पहले दशक तक हासमान रूप में ही सही २००-२५० वर्षों की कला परम्परा की धरोहर इन्हीं पत्रों में कैद है । अहमदाबाद के एल०डी० इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्डोलोजी, एल०डी० म्यूज्म, देहली जैन उपाश्रय, जैन प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान एवं बीजे० इंस्टिट्यूट में मारवाड़ शैली के कई पत्र हैं। इनकी सची एवं चित्र डॉ० यू०पी० शाह ने देजरार ऑफ जैन भण्डार पुस्तक में प्रकाशित की है। उक्त सूची से ही यहाँ मैने दो विज्ञप्ति पत्रों की शैली की विवेचना की है । ये १८वीं१९वीं सदी में चित्रित हुए। मारवाड़ प्रदेश के जोधपुर एवं अन्य ठिकानों से गुजरात भेजे गये हैं। इनके चित्रण में काफी विविधता है। संरक्षकों की रुचि एवं धन व्यय करने के आधार पर इस प्रदेश से पाये जाने वाले विज्ञप्ति पत्रों का भिन्न-भिन्न प्रकार का चित्रण है। अहमदाबाद के एल०डी० इंस्टिट्यूट ऑफ इंडोलोजी में संग्रहित एक पत्र (एल० डी० २७६४७) विशेष रूप से उल्लेखनीय है । यह सोजत के जैन संघ द्वारा सूरत के उदयसागर सूरि को लिखा गया। सोजत, मारवाड़ का महत्त्वपूर्ण ठिकाना था। यह पूरा पत्र उत्तम अवस्था में है। नीचे इसके लेख की लिपि कई जगह धुंधली हो गयी है। इसे अनुमानतः अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध का माना गया था। गत वर्ष इसके लेख की अन्तिम धुंधली पड़ती पक्तियों को ध्यानपूर्वक देखने पर मुझे इस पर तिथि मिली। यह संवत् १८०३ [१७४६] मैं चित्रित हुआ था। अन्य विज्ञप्ति पत्रों की तुलना में यह आकार में छोटा है। २०५ सेमी० लम्बा २२ सेमी० चौड़ा है। इसमें शहर, मार्गों, मन्दिर एवं जुलूस का चित्रण नहीं है। चित्र आठ खंडों में विभाजित है। पहले खण्ड में लाल पृष्ठभूमि में उजले एव आसमानी रंग के घोड़े हैं। दौड़ते हुए घोड़ों का अत्यन्त उत्कृष्ट चित्रण हुआ है। घुड़सवार का चित्रण नागौरी शबीहों के घुड़सवारी के अनुरूप हुआ है। मारवाड़ के ठिकाने नागौर में कई चित्रों में मुगल प्रभाव के तहत कम घनी नुकीली दाढ़ी का चित्रण हुआ है। दूसरे खंड [ चित्र नं १ ] में पताका एव धारियाँ लेकर जाते अनुचरों की वेषभूषा अठारहवीं शती के प्रायः सभी राजस्थानी चित्रों में सेवकों के अंकन में एक जैसी है। इस पूरे पत्र में आंखों का चित्रण जोधपुर के चित्रों से बिल्कुल भिन्न है तथा सिरोही के चित्रों के निकट है। सिरोही मारवाड़ एवं मेवाड़ के मध्य स्थित है। कई बार सिरोही मारवाड़ का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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