Book Title: Marvad Chitrashaili evam jain Vignapati Patra Author(s): Madhu Agarwal Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 1
________________ मारवाड़ चित्रशैली एवं जैन विज्ञप्तिपत्र मधु अग्रवाल किसी भी प्रदेश के युगविशेष की संस्कृति एवं सभ्यता उस काल-विशेष की कला में निहित होती हैं। ये कलाकृतियां बीते युग का दर्पण हुआ करती हैं । समस्त मारवाड़ प्रदेश प्राचीनकाल से ही जैन धर्मानुयायियों का उल्लेखनीय केन्द्र रहा है। इन जैन धर्मावलम्बियों की सांस्कृतिक समृद्धि इनके संरक्षण में बनी मूर्तियों, भित्तिचित्रों, ताम्रपत्रों एवं पट्टों में सिमटी है। राजस्थानी चित्रकला के प्रमुखतया दो स्वरूप मिलते हैं-एक लोककलात्मक एवं दूसरा दरबारी। प्रथम स्वरूप अधिकतर धर्मपीठों एवं जनसमाज में पल्लवित हुआ है तथा दूसरा सामन्ती परिवेश में । निश्चय ही उपयुक्त दोनों स्वरूप अबाधगति से प्रवाहित होते रहे हैं। अधिकांशतः जैन चित्रों को भी हम लोक चित्रों के तहत रखते हैं। जैन विज्ञप्तिपत्रों में भी उस प्रदेश की जैन धार्मिक मान्यताओं, जैन एवं अजैन समाज के तहत रखते हैं। जैन विज्ञप्तिपत्रों में भी उस प्रदेश की जैन धार्मिक मान्यताओं, एवं जैन अजैन समाज के सामान्य जनजीवन की झांकी मिलती है। विज्ञप्तिपत्र कुण्डलित पट होता है। लम्बे कागज पर खंडों में चित्र बने होते हैं। इसके पीछे महीन कपड़ा लगा रहता है। कुण्डलित पटों की परम्परा पश्चिम भारतीय चित्रों में काफी पहले से चली आ रही है। पन्द्रहवीं शताब्दी के पंचतीथी पट एवं वसन्त विकास ऐसे ही कुण्डलित पट हैं। इन पटों पर चित्रकार स्थान की सीमा में नहीं बँटा होता है। जैन समाज की परम्परानुसार जब कभी जैनाचार्यों या मुनियों को कोई जैन संघ अपने स्थान पर चौमासे के लिए अथवा समाज के धर्मलाभ के लिए बुलाता है, उस समय विनयपूर्वक निमन्त्रण पत्र भेजा जाता है, जिसे विज्ञप्तिपत्र कहा जाता है । जैनियों का अत्यन्त पवित्र पर्व पर्युषण पर्व माना जाता है, जो प्रतिवर्ष भाद्रपद माह में होता है तथा प्रायः आठ दस दिन तक चलता है। बीते हुए वर्ष में जाने-अनजाने में हुई त्रुटियों या अपराधों के लिए इस अवसर पर अपने मित्रों व अन्य व्यक्तियों को क्षमायाचना पत्र भेजे जाते हैं। जिन्हें क्षमापना पत्र कहा जाता है। इनकी गिनती विज्ञप्ति-पत्रों के वर्ग में ही होती है। इनके आकार-प्रकार में काफी विविधता पायी गयी है। श्री भंवरलाल नाहटा के अनुसार अबतक का ज्ञात सबसे लम्बा विज्ञप्ति पत्र बीकानेर का माना जाता है । यह ९७ फुट लम्बा है, जो ९४ फुट तक चित्रित है। श्री अगरचन्द नाहटा के अनुसार विज्ञप्तिपत्रों में सर्वाधिक लम्बा पयूषण पर्व लेख किशनगढ़ के एक विज्ञप्तिपत्र का है। इस लेख की हस्तलिखित प्रति २५ पन्नों की है। आरम्भ में ऐसे पत्रों में केवल लिखित निमन्त्रण होता था। डॉ० हीरानन्द शास्त्री के अनुसार इन लिखित पत्रों का एक अन्य प्रकार भी होता है। उनमें जैन साधु अपने गुरु को वर्ष भर का लेखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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