Book Title: Marvad Chitrashaili evam jain Vignapati Patra Author(s): Madhu Agarwal Publisher: Z_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf View full book textPage 4
________________ ntaravasaHARTERS a २४८ मधु अग्रवाल अधीनस्थ प्रदेश रहा है। कई विद्वान् सिरोही एवं मारवाड़ के चित्रों को एक ही शैली रखते हैं। इस पत्र में कई स्थानों पर गुजरात के चित्रों का भी प्रभाव है। आरम्भ से ही मारवार के चित्रों पर गुजरात का प्रभाव पाया गया है। वास्तव में मारवाड़ चित्र शैली गुजरात में ही निकली है। १७वीं सदी के अभिलेख विहीन कई चित्रों के बारे में निश्चित रूप से यह कहना मुश्किल है कि ये मारवाड़ के थे या गुजरात प्रदेश में निर्मित हुए। दूसरे, तीसरे, चौथे एवं पाँचवें खंडों में पुरुष गायकों एवं नर्तकों का चित्रण हुआ है। इन चारों चित्रों [ चित्र-२] में तारतम्य एवं क्रमबद्धता है। नृत्य संगीत के वातावरण की हलचल, उन्मुक्तता पूरी तरह संप्रेषित हो रही है। इनकी वेषभूषा वातावरण के अनुकूल तीखे रंगों की है। रूपहले रंगों का भी प्रचुरता से प्रयोग हुआ है। चारों खंड ऊपर-नीचे से एक इंच चौड़ी रेखा द्वारा विभाजित किये गये हैं। क्रमशः बैगनी, लाल तथा पीला एवं बैगनी रंगों की पृष्ठभूमि है । रंगों में सामंजस्य है। छठे खंड [चित्र-३] में हरी पृष्ठभूमि में स्त्रियों के जुलस का दृश्य है। उनका चिया सिरोही चित्रों के अत्यन्त निकट है। त्रों के अत्यन्त निकट है। गोल भरा-भरा चेहरा. गालों की माडलिंग, गोल ठड्डी आँखें, माथा आदि सिरोही चित्रशैली की परम्परा में है। समकालीन चित्रों की तरह आकृतियाँ गठी हुई, आकर्षक, औसत कद की एवं समानुपातिक संरचना वाली है। इसकाल तक आते आते समकालीन चित्रों के लहंगे भारी भरकम घेर वाले होते हैं। यहाँ कम घेर लहंगे पारदर्शी दुपट्टे के कंगूरे अठारहवीं सदी के प्रारम्भ के चित्रों की भाँति चित्रित हुए हैं। आभूषणों का भी रूढिबद्ध अंकन है। आकृतियाँ स्थिर गतिहीन प्रतीत हो रही हैं। ___ सातवाँ खण्ड १४ इंच लम्बा है। लाल रंग की पृष्ठभूमि में अन्य रंगों का आकर्षक सामंजस्य हुआ है। जैन साधु साध्वियां दीक्षा दे रहे हैं। आकृतियाँ समकालीन चित्रों की परम्परा में हैं। अठारहवीं सदी के मध्य के आस-पास मारवाड़ एक बीकानेर दोनों चित्र शैलियों में इस प्रकार गोल भरे-भरे चेहरे, भारी गर्दन, दोहरी ठुड्डी। हल्के गलमुच्छे, मूछे, एवं पगड़ी चित्रित होती रही है। यहाँ आंखों के चित्रण में अन्तर है.।। जैन साध्वी के समकक्ष बैठा किशोर एवं नीचे औरतों के समूह की ओर आ रहा किशोर भी समकालीन मारवाड़ बीकानेर के चित्रों में प्रायः चित्रित हुआ है। ये तत्त्व मथेन घराने के चित्रकारों की विशिष्ट शैली में है। नेशनल म्यूजियम में संग्रहीत मंथेन रामकिशन द्वारा चित्रित १७७० ई० की रागमाला एव अन्य चित्रों में इस भाँति के किशोर वय की आकृतियां चित्रित हैं। इन पत्रों पर चित्रकारों का नाम नही मिलता है। शैली के आधार पर कहा जा सकता है कि उनका चित्रण मंथेन घराने के चित्रकारों ने ही किया होगा। इसे मथेन या मंथेरना दोनों कहते हैं। मथेन जोगीदास म० अखेराज, म० रामकिशन, म० अमैराम, म० सीताराम ईनाम बीकानेर के हस्तलिखित सचित्र ग्रन्थों में पाये गये हैं। इन नामों से अनुमान होता है कि यह चित्रकारों का एक घराना रहा होगा । इनके बारे में अधिक जानकारी नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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