Book Title: Marudhar aur Malva ke Panch Tirth Author(s): Devendravijay Publisher: Z_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf View full book textPage 6
________________ -चतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासकिया था। समाधि-मंदिर के बन जाने पर इसमें गुरुदेव की सन्दर्भ प्रतिमा स्थापित की गई। इस संदर समाधि-मंदिर की भित्तियों १. उक्त पट्टावली में यह संवत् लिखा हुआ मिलता है। परन्तु पर गुरुदेव के विविध जीवन-चित्र आलेखित हैं। इस तीर्थ का इतिहासज्ञों के समक्ष यह अभी मान्य नहीं हो सका है। उद्धार-कार्य हाल ही में वर्तमानाचार्य श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से सम्पन्न हुआ है। वि.सं. २०१३ चैत्र सु. __ - सम्पादक १० को दोनों मंदिर और समाधि-मंदिर पर आपके ही करकमलों २. 'संवत् १६२८ वर्षे श्रावण सुदि १ दिन, भट्टारक से ध्वजदण्ड समारोपित हुए हैं। श्रीविजयप्रभ सूरीश्वर राज्ये श्रीकोरटानगरे, पण्डित श्री ५ श्री श्रीजय विजयगणिना उपदेशथी मु. जेतपुरा सिंगभार्या, म. महाराय जब वि.सं. २०१२ ज्येष्ठ पूर्णिमा को लगभग १८ वर्षों के पश्चात् गुरुदेव श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज का मुनिमण्डल सिंगभार्या, सं. बीका, सांवरदास, को उधरणा, मु. जेसंग, सा. गांगदास, सा. ताधा, सा. खीसा, सा. छाँजर, सा. नारायण, सा. सह यहाँ पर पदार्पण हुआ उस समय मालव-निवासी श्री संघ तीर्थदर्शन एवं गुरुदेव की मंगलमय वाणी को सुनने की उत्कण्ठा कचरा प्रमुख समस्त संघ भेला हुईने श्री महावीर पवासण बदूसार्या छे लिखितं गणी मणिविजयकेसरविजयेन बाहरा महवद सुत लाधा से लगभग चार हजार की संख्या में उपस्थित हुआ था। गुरुदेव का श्रीसंघ को यही उपदेश हुआ कि समाज की आध्यात्मिक पदम लखतं, समस्त संघ नर मांगलिक भवति शुभं भवतु।' उन्नति के लिए समाज में श्रेष्ठ गुरुकुलों का होना आवश्यक है, ३. उत्तमांग विकल महिला को मूलनायक रखना या नहीं क्योंकि इस भौतिकवाद के युग में मानवमात्र को शांति की रखना के लिए देखिये श्री वर्तमानाचार्य-लिखित 'श्रीकोरटाजी प्राप्ति यदि किसी से हो सकती है, तो वह एकमात्र धार्मिक तीर्थ का इतिहास' शिक्षा से ही जो केवल गुरुकुल द्वारा ही प्रसारित की जा ४. विशेष ज्ञातव्य बोतां के लिए कविवर मनि श्रीविद्याविजयजी सकती है। महाराज द्वारा लिखित 'श्री भाण्डवपुर जैन तीर्थ मण्डन श्रीवीरचैत्य गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य कर श्रीसंघ ने श्रीमोहनखेडा - प्रतिष्ठामहोत्सव' देखिए तीर्थ में ही 'श्री आदिनाथ-राजेन्द्रजैन-गुरुकुल' नाम की शिक्षण प'स्वास्ति श्री पार्श्वजिनप्रदेशात्संवत १०२२ वर्षे मासे फालाने संस्था का सर्वानुमति से खोलना तत्काल घोषित कर दिया। इस सदि पक्षे ५ गरुवासरे श्रीमान श्रेष्ठी श्रीसखराज राज्ये प्रतिष्ठितं श्री समय यह संस्था राजगढ़ में चल रही है और मोहनखेड़ा में भवन नखड़ा म भवन बप्पभट्टी (ट्ट) सूरिभिः तुंगिया पन्तने।' बप्पटी (ट: बन जाने पर निकट भविष्य में ही वहाँ प्रारंभ हो जाएगी। ।।इति।। - श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रंथ से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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