Book Title: Manishiyo Ki Drushti Me Dr Bharilla
Author(s): Ravsaheb Balasaheb Nardekar
Publisher: P T S Prakashan Samstha

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Page 29
________________ मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल तस्मै श्री गुरवे नमः स्वामी विवेकानन्द के बाद विदेश में भारतीय धर्मों का सही अर्थ में प्रचारक यदि भारत को कोई प्राप्त हुआ है तो वे डॉ. भारिल्ल ही हैं, उन्हें ही यह श्रेय दिया जा सकता है। ऐसे कई लोग होंगे जो संस्थाएँ चलाने में निष्णात हों, ऐसे भी कई लोग होंगे जो प्रवचन करते हों, ऐसे भी लोग मिलेंगे जो पत्रिकाओं का सम्पादन, लेखन कार्य करते हों; पर एक साथ ये सब कार्य करनेवाला एक व्यक्ति नहीं मिल सकेगा और वह भी सबमें समान सामर्थ्य व कुशलता के साथ । लेकिन डॉ. भारिल्ल इसके अपवाद हैं, इस एक व्यक्तित्व में ये सब विशेषताएँ समाहित हुई हैं और वह भी पूर्णता के साथ। प्रशासक, उत्तम प्रवचनकार नहीं बन सकते। पर आश्चर्य होता है इस बात पर कि डॉ. भारिल्ल दोनों एक साथ कैसे हैं? यह मुझे ही नहीं, किसी को भी आश्चर्य में डालने वाली बात हो सकती है। - बाहुबली भोसगे, हुबली (कर्नाटक) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान बीसवीं सदी के महान सन्त आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजी स्वामी द्वारा पैंतालीस वर्षों तक आध्यात्मिक तत्त्वज्ञान की जो ‘ज्ञानामृत' वर्षा हुई है; उसको जन-जन तक पहुँचाने में जिनका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है, जिन्होंने अपनी मधुरवाणी और आध्यात्मिक कलम से तत्त्वज्ञान को प्रचारित किया है - ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी डॉ. भारिल्ल हैं। - वाणीभूषण पण्डित ज्ञानचन्द जैन,विदिशा (म.प्र.) वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो काल के माँझी से अगर मैं अभ्यर्थना करूँ कि वह अपनी नौका का लंगर एक ऐसे घाट पर डाले, जिस घाट पर स्वाध्याय की सहज परंपरा का सशक्तिकरण हुआ हो, ऐसा घाट वह खोजे जहाँ वीतराग-विज्ञान के अभ्यास स्ट्रक्चर, कॉन्सेप्ट बने हो, स्वयं को समझने की कोशिश हुई हो,

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